सिंड्रेला को मिली जादुई फ्रॉक!

फूल नगर में एक सिंड्रेला नाम की एक लड़की रहती थी। सिंड्रेला के माता-पिता की मृत्यु उसके बचपन में ही हो गई थी। जिसके बाद सिंड्रेला अपनी नानी के साथ रहने लगी। सिंड्रेला की नानी के पास इतने पैसे नहीं थे की वो उसे अच्छे कपड़े और खिलोने लाकर दे सके। सिंड्रेला को हमेशा से ही एक लाल फ्रॉक खरीदने का सपना था लेकिन उसकी नानी बस इतना ही कमा पाती थी जिससे उन्हे रोज़ का भोजन मिल जाया करे। ये सब देखकर सिंड्रेला कभी अपनी नानी को इस बात के लिए परेशान  नहीं करती थी।

 एक दिन सिंड्रेला ने रात के खाने के समय अपनी नानी से बोला की वो अपने छोटी उम्र के बच्चो को टूशन पढ़ाना चाहती है जिससे घर में मैं भी आपकी मदद कर सकू।


सिंड्रेला की बात सुनकर उसकी नानी बात मान गई ।अगले दिन से ही सिंड्रेला ने छोटे छोटे बच्चों को पढ़ना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे करके सिंड्रेला के पास और बच्चें आने लगे। जिससे सिंड्रेला अच्छे पैसे कमाने लगी और अपनी नानी की और अच्छे से मदद करने लगी। ये सब देख सिंड्रेला की नानी ने बोला। अब जब हम दोनों साथ मिलकर घर चला रहे तो क्यों न क्रिस्मस के लिए तुम्हारे पसंद की एक अच्छी सी ड्रेस लेकर आई जाए।

ये सुन सिंड्रेला बहुत ही खुश हुई और उसने नानी के साथ जाने के लिए हाँ कह दिया । उसी रात पास में लगे एक मेले में दोनों सिंड्रेला के लिए एक ड्रेस खरीदने गए । पूरा मेला देखने के बाद सिंड्रेला को कोई भी ड्रेस पसंद नहीं आई, फिर अचानक से उसकी नज़र दूर बैठे एक बुजुर्ग पर पड़ी । उस बुजुर्ग  के पास के लाल रंग की एक फ्रॉक थी जिससे देख सिंड्रेला उस तरफ दौड़ी और वहां जाकर अपनी नानी से ड्रेस की मांग करनी लगी। इतनी साधारण फ्रॉक को देखर उसकी दादी ने सिंड्रेला को वो फ्रॉक खरीदने के लिए मना कर दिया लेकिन सिंड्रेला नहीं मानी, जिसपर दादी ने दूकान वाले से फ्रॉक का दाम पूछा।


दूकानदार ने बताया मात्र डेढ़ सौ रूपये और इसके साथ ये जूतियां भी मुफ्त है।

इतनी सस्ती फ्रॉक की बात सुनकर उसकी दादी ने दुकानदार से इसकी इतनी सस्ती होने का कारण पूछा।

दूकानदार क्योंकि मेरे पास बस एक ये ही फ्रॉक बच्ची है। सोचा इसे जल्दी से बेचकर मैं घर की ओर निकल जाऊँ।

नानी ने सिंड्रेला के लिए वो लाल फ्रॉक ले लिया और घर वापिस आ गई । कुछ दिनों बाद क्रिस्मस का त्यौहार आ गया । पूरा शहर रौशनी से जगमगा रहा था, सिंड्रेला ख़ुशी - ख़ुशी ने अपनी वो लाल फ्रॉक भी पहन ली। लाल फ्रॉक में सिंड्रेला इतनी सूंदर लग रही थी की जो उसे देखे बस देखता ही रह जाये।

थोड़ी देर बाद सिंड्रेला और उसकी नानी खाने के लिए बैठ गई। तभी सिंड्रेला ने बोला। नानी मुझे आज बाहर का खाना खाने का मन कर रहा है। काश कुछ बाहर का खाना खाने को मिल जाए ।


सिंड्रेला के ऐसा कहते ही उनके सामने कई तरह के पकवान हाज़िर हो गए। ये देख दोनों हैरान हो गए और उन स्वादिष्ट पकवानों की तरफ हैरानी से देखने लगे।

दोनों को कुछ समझ नहीं आया की ये हुआ कैसे? इसे क्रिस्मस पर जीसस का जादू समझकर दोनों शांत हो गए।  लेकिन इस जादू का सिलसिला बंद नहीं हुआ । उस रात सिंड्रेला ने जो जो मांगा उसे वो सब मिलने लगा । दोनों को ही समझ नहीं आया की ये उनके साथ क्या हो रहा है? अगली सुबह जब सिंड्रेला अपने पुराने कपड़ों में आई तो सारा जादू ख़त्म गया।

कई दिनों तक दोनों काफी कशमकश में रहे की क्रिस्मस वाले दिन उनके साथ वो सब कैसे हुआ? एक दिन सिंड्रेला और नानी को पास में किसी समाहरो में जाने का निमंत्रण मिला और एक बार फिर सिंड्रेला ने अपनी वो लाल फ्रॉक पहन ली। रात को समाहरों खत्म होने के बाद दोनों वापिस आ रहे थे की तभी उन्हें कुछ डाकुओं ने घेर लिया।

डाकुओं का सरदार ने कहा हाहा, जितना भी पैसा है तुम्हारे पास।  हमे दे दो, वरना हम तुम्हे मार देंगे।


सिंड्रेला कहने लगी हमारे पास कुछ भी नहीं है बस इस बैग के आलावा। और इसमें बस थोड़ा सा खाना है डाकुओं का सरदार: मुझे नहीं पता कहि से भी लाकर दो।  हमे पैसे चाहिए।

सिंड्रेला मन में बोलने लगी काश हमारे पास होते पर हमारे पास नहीं है। सिंड्रेला के इतना कहते ही उसके हाथों में ढेर सरे पैसे आ गए । ये देख सारे हैरान हो गए। डाकुओं का सरदार वो पैसे छीन लेता है और कहता है।

डाकुओं का सरदार: तो तुम्हे जादू भी आता है।अब जल्दी से हमे ढेर सारे हीरे मोती दो वरना हम तुम्हारी नानी को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। डाकुओं का सरदार ने नानी को अपने कब्ज़े में कर लिया । वही अब नानी को ये बात समझने में थोड़ी देर भी नहीं लगी की सिंड्रेला की लाल फ्रॉक जादुई है और वो इसे पहनकर जो भी मांगेगी उसे वो मिलेगा। तभी सिंड्रेला की नानी ने उसे बोला।

दादी ने सिंड्रेला से कहा तुम जो मांगोगी तुम्हें वो मिलेगा। समझदारी से काम लो और इनसे सामना करो। तभी सिंड्रेला अपनी समझदारी का इस्तेमाल करके उन डाकुओं की वहां से गायब होने की विश मांगती है और वो वहां से गायब हो जाते है।इसके बाद सिंड्रेला की नानी उसे बताती है की ये सब क्यों हो रहा है। तभी वहां वो दुकानदार आता है और उसे देखकर दोनों हैरान हो जाते है क्योंकि वो दूकानदार सिंड्रेला के पिता का रूप ले लेता है,साथ ही वहां सिंड्रेला की माँ भी आ जाती है

सिंड्रेला बहुत हैरानी से कहती है पिताजी आप!


वो बुजुर्ग आदमी सिंड्रेला का  पिता होता हैं और बताता हैं, हां मैं… कई सालों से मैं तुम्हारे बड़े होने का इंतज़ार कर रहा था की कब मैं तुम्हें ये जादुई फ्रॉक दू।ये फ्रॉक तुम्हें तब ही मिल सकती थी जब तुम एक ज़िम्मेदार लड़की बनती और अपनी नानी के साथ कदम से कदम मिलाकर तुम घर सँभालती| और तुमने कुछ ऐसा ही किया, इससे ज्यादा जिम्मेदार इस उम्र में तुम क्या होगी तभी मैंने तुम्हें ये फ्रॉक देने का फैसला कीया।

नानी कहती हैं पर बेटा तुम्हारी तो मृत्यु हो गई थी फिर तुम वापिस कैसे आये।

सिंड्रेला की माँ और मेरी मृत्यु का समय वो नहीं था जब हमारी मृत्यु हुई थी। इसी वजह से हम भटक रहे थे। भटकते - भटकते हम एक परी के पास पहुंचे। उस परी की हालत बहुत खराब थी और वो कमजोर भी थी तो हमने उसकी मदद की। मदद करके के बदले उसने हमे ये जादुई फ्रॉक दी जिसके बाद हमने तुम्हें ये देने का फैसला किया और हम तुम्हारे जिम्मेदार होने का इंतज़ार कर रहे थे।


ये सब सुनकर सिंड्रेला बहुत खुश हुई। वही अपनी बात कहकर सिंड्रेला के माता-पिता वहां से चले गए और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो गई। सिंड्रेला भी अपनी नानी के साथ घर चली गई.. साथ ही सिंड्रेला को मिली जादुई फ्रॉक का वो कभी गलत इस्तेमाल नहीं करती और ये राज़ सबसे छुपाकर हमेशा के लिए रख लेती है ..

इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है की सब्र का फल हमेशा मीठा होता है|

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