ईमानदारी की ईदी

एक बार की बात हैं एक छोटे से गाँव में एक आदमी रहता था जिसका नाम रहीम था और लोग उन्हें प्यार से रहीम काका बुलाते थे। हर रोज की तरह आज की सुबह भी रहीम काका ख़ुशी - ख़ुशी अपने काम के लिए निकले, आज रहीम काका बहुत खुश थे क्योंकि दो दिन बाद ईद थी। और वह ये सोच रहे थे की इस बार वो अपने परिवार के साथ मिलकर ख़ुशी से ईद मनायेंगे।

यही सोचते हुए रहीम काका अपने मालिक की दूकान पर पहुंचे और दूसरी दुकाम पर पहुंचाने के लिए आलू का बोरा उठाया और चल दिए, रहीम काका बहुत ही ईमानदार और सच्चे इंसान थे। वह हमेशा अपना काम बहुत ही ईमानदारी के साथ करते थे। आज रहीम काका अपनी ख़ुशी में मग्न ऐसे चल रहे थे की उन्होंने ध्यान ही नहीं दिया की आलू के बोर में से कुछ आलू रास्ते में गिर गए है, और वो दुकानदार के पास पहुँच गए, अब जब दुकानदार ने बोरे का वजन किया तो उसमे सामान कम था जिससे उसे रहीम काका पर शक हुआ और उसने रहीम काका के मालिक को खबर करदी।

अब रहीम काका जब वापस आए तो उनके मालिक ने उनसे कहा।

मालिक रहीम काका से पूछता है, आलू के बोरे में से आलू कम कैसे हुए ? रहीम काका उससे कहते है मालिक मुझे नहीं पता, में तो यहाँ से सीधा दुकानदार के पास ही गया था। मालिक गुस्से में रहीम काका से कहता है अच्छा सीधा गए थे फिर भी सामान गायब हो गया, इतना झूठ। जी मालिक मेने आजतक कभी सामान के बोरे को हाथ भी नहीं लगाया हैं, ज्यो का त्यों उसे उसकी जगह पर पहुँचता हूँ मालीक, शायद रास्ते में कही गिर गया हो, भरोसा करे मालिक मेने कुछ नहीं किया हैं। मालिक ने उसकी एक ना सुनी येलो तुम्हारे पैसे और अब से काम पर नहीं आना।



यही बोलते हुए मालिक रहीम काका को काम से निकाल देता हैं, अब रहीम काका दुखी मन से उदास से चेहरे के साथ वापस घर को चल पड़ते हैं, इस बार वो घर जाने के लिए जंगल का रास्ता लेते हैं और वही चलते - चलते रास्ते में उन्हें एक बकरी और उसका बच्चा मिलते हैं, वो उनके मालिक को ढूंढ़ने के लिए जंगल में चारो तरफ देखते हैं लेकिन उन्हें वहाँ कोई नज़र नहीं आता तो वो उस बकरी और उसके बच्चे को अपने साथ घर ले जाते हैं। घर पहुंचते ही रहीम काका का बेटा उस बकरी को देखकर बहुत खुश होता हैं, और बोलता हैं।

रहीम का बच्चा खुश होकर कहता है, वाह अब्बू ! आज तो खाना खूब अच्छा होगा, लाइए इस बकरे को मुझे दीजिये आज इसे पाककर खायेगे, खूब मजा आएगा।रहीम अपने बेटे से कहता है नहीं बेटा यह बकरा नहीं बकरी हैं और यह हमारी नहीं हैं, ये मुझे जंगल में मिली थी, मैंने इसके मालिक को वहाँ ढूंढा लेकिन कोई नहीं मिला इसीलिए में इसे यहाँ ले आया लेकिन हम इसे मारेंगे नहीं क्योंकि इसके साथ इसका बच्चा भी हैं, अब हम इसके मालिक को ढूंढेगे और जिसकी भी बकरी होगी वो हमारे यहाँ से इसे वापस ले जायेगा।

जी अब्बू ठीक हैं।

यह बोलके रहीम काका उस बकरी को खुटे से बांध देते हैं, ऐसे ही दो दिन बीत जाते हैं लेकिन रहीम काका को अभी तक उस बाकरी का मालिक नहीं मिलता हैं तो उनका बेटा फिर उनसे बोलता हैं।

अब्बू  इतने दिन हो गए इस बकरी का मालिक नहीं मिला अब इस बकरी और इसके बच्चे का क्या करना हैं ? रहीम काका अपने बेटे से कहते है! हम आज ही इसके मालिक को ढूंढेगे लेकिन अगर आज भी इसका मालिक नहीं मिला तो में इन्हें  बाज़ार में बेचकर ईद का सामान ले आऊंगा।

आधा दिन बीत जाता हैं लेकिन रहीम काका को उस बकरी का मालिक नहीं मिलता हैं, तो वो उस बकरी को लेकर बाज़ार की ओर उसे बेचने चल पड़ते हैं, तभी रास्ते में उन्हें एक आदमी मिलता हैं जो की एक ब्रह्मिण होता हैं, वो रहीम काका से बोलता हैं।

वो ब्राह्मण रहीम से पूछता है, यह बकरी और ये बच्चा मेरे हैं, तुम्हारे पास कैसे आये ? रहीम उस ब्राह्मण से कहता है जी मुझे ये बकरी और इसका ये बच्चा दो दिन पहले जंगल में मिले थे। मेने इसके मालिक को ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की लेकिन कोई नहीं मिला।

ब्राह्मण रहीम से पूछता है, तुम काम क्या करते हो ? जी अभी तो कोई काम नहीं करता।

ब्राह्मण खुश होकर रहीम से कहते है, तुमने मेरी बकरी और उसके बच्चे का दो दिन काफी अच्छा ख्याल रखा हैं, क्या तुम मेरी बाकरिया चराने का काम करोगे ?

रहीम काका ख़ुशी से जी जरूर।

ब्राह्मण इनाम स्वरूप उसे कुछ धन देता है ताकि वह ईद मना सके।इसी प्रकार ईद के पावन अवसर पर उन्हें उनकी ईमानदारी की ईदी मिलती हैं और अपना भरण पोषण करने के लिए काम भी मिल जाता है।


शिक्षा :-  हमें हमारी ईमानदारी का फल एक ना एक दिन जरूर मिलता है। थोड़े कठिन जरूर होते है रास्ते पर हमें सदैव धीरज से काम लेना चाहिए। 
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