आलसी बेटा

किसी गाँव में एक अमीर साहूकार अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहता था। उसके बेटे का नाम सुमित  था। सुमित बहुत ही आलसी था। जबकि साहूकार बहुत मेहनती था।  वो रोज़ सुबह सूर्योदय  होने से पहले शिव मंदिर जाता था और उसके बाद वो अपने खेतो, तबेलों  और जहाँ जहाँ तक उसका काम फ़ैला हुआ था  वहाँ का चक्कर लगाता था। साहूकार अपने बेटे के आलसीपन से बहुत परेशान रहता था।

उठ जाओ, मेरे साथ खेतों में चलकर कुछ काम कर लो! सुमित अपने पिता से कहता है, अभी नहीं पिताजी, मुझे सोने दीजिए। साहूकार परेशान होकर अकेला ही खेतों में चला गया।

कुछ समय बाद साहूकार की तबीयत बहुत ख़राब रहने लगी और कुछ ही दिनों में वो मर गया। साहूकार के मरने के बाद भी उसके आलसी बेटे ने कारोबार पर ध्यान नहीं दिया जिससे उन्हें कारोबार में बहुत नुकसान  होने लगा। यह देखकर सुमित की माँ ने बहुत दुःखी होकर उससे कहा बेटा, हमें कारोबार में बहुत नुक्सान हो रहा है।

सुमित अपनी माँ से कहता है तो, इसमें मैं क्या कर सकता हूँ?  मुझे कहा कारोबार की समझ है। मैं तो आजतक पिताजी के साथ खेत तक भी नहीं गया! सुमित की माँ उसे एक तरकीब बताती है, एक काम करो, दूसरे गाँव में तुम्हारे नाना रहते है न । उन्हें इस कारोबार की बहुत समझ है। तुम उनसे जाकर मिलो। उनके पास ज़रूर इसका कुछ समाधान होगा। सुमित हाँ में सर हिलाकर ठीक है माँ! मैं कल ही चला जाऊँगा।

 अगली सुबह सुमित नाना के पास गया ।  प्रणाम, नाना जी ।



नाना जी सुमित को देखकर बहुत खुश होकर आशीर्वाद देते है, खुश रहो, बताओ कैसे आना हुआ ? तो सुमित अपने दादा जी को सब बातें बताता है, दादा जी पिताजी के गुज़र जाने के बाद, हमें कारोबार में बहुत नुकसान हो रहा है। माँ ने बताया कि आपको कारोबार की बहुत समझ है। इसलिए अब आप ही मेरी परेशानी का कोई हल निकालिए। 

तो सुमित के नाना जी कहते है, तुम्हारी माँ ने बिलकुल ठीक कहा बेटे, मेरे पास तुम्हारी परेशानी का हल है।

सुमित अपने दादा जी से पूछता है, बताइये, नाना जी , जल्दी बताइए।

नाना जी सुमित को बताते है, तुम्हें बस इतना करना होगा कि अपने पिता की तरह रोज़ सुबह सूरज के उगने से पहले शिव मंदिर जाना होगा और उसके बाद जहाँ-जहाँ तक तुम्हारा काम फैला हुआ  है, वहाँ जाना होगा और तुम्हें ऐसा हर रोज़ करना होगा। अमित कहता है ठीक है, जैसा आपने कहा है मैं वैसा ही करूँगा ।

अगले दिन से ही सुमित सूरज उगने से पहले उठने लगा और सबसे पहले शिव मंदिर जाता और उसके बाद जहाँ-जहाँ तक उनका काम फैला हुआ था, वहाँ-वहाँ जाने लगा। वो रोज़ सुबह सबसे पहले खेत जाता, फिर राशन की दुकान और फिर भैंसो के तबेले। बहुत दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। उसे रोज़-रोज़ काम पर आता देख मज़दूर आपस में बात करने लगे ।

एक मजदूर दूसरे मजदूर से कहता तुमने देखा, मालिक अब रोज़-रोज़ काम देखने आने लगे हैं । इस पर दूसरा मजदूर बोला….हाँ ! लगता है अब हमें ये घोटालेबाज़ी बंद करनी पड़ेगी । तुम सही कह रह हो, वरना हम फँस जाएंगे।

धीरे-धीरे सभी मज़दूरों ने देखा की सुमित रोज़ाना अपनी दूकान और खेत के चक्कर लगाने लगा और पकडे जाने के डर से मज़दूरों ने घोटाले करना बंद कर दिया। घोटाले बंद होने के कारण कारोबार में नुकसान होना भी बंद हो गया और धीरे-धीरे सुमित और उसकी माँ पहले की तरह ही अमीर हो गए।

सुमित ख़ुशी से अपनी माँ से कहता हैं, अरे वाह ! देखो माँ… नाना जी की सलाह से हम फिर से अमीर हो गए! सुमित की माँ भी बहुत खुश थी। और सुमित से कहती तुम ठीक कह रहे हो बेटा। तुम्हें नानाजी के पास जाकर उन्हें धन्यवाद करना चाहिए।

सुमित को माँ की बात ठीक लगी। वो नाना जी से मिलने गया।

सुमित अपने  नाना जी से कहता है, नाना जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया, आपने तो चमत्कार कर दिया। आपकी वजह से हमारा कारोबार फिर से चल पड़ा।

इसपर नानाजी सुमित से कहते है बेटे, इसमें मैंने कुछ नहीं किया इसमें सब कुछ तुमने ही किया है ।

सुमित हैरानियत से अपने दादा जी से पूछता है, क्या मतलब ? वो कैसे?

नानाजी उससे कहते ये सब बस तुम्हारे आलस की वजह से हो रहा था। तुम्हारे आलस की वजह से तुम अपने कारोबार पर ध्यान नहीं दे रहे थे, जिसका फायदा उठाकर तुम्हारे मज़दूर कारोबार में घोटाला कर रहे थे। अब क्योंकि तुम रोज़ काम पर जाने लगे तो पकडे जाने के डर से  तुम्हारे मजूदरो ने घोटाले करना बंद कर दिया और तुम्हारा काम चल पड़ा। 

यह सुनकर सुमित को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने आलस करना छोड़ दिया और वो अपना कारोबार बहुत मेहनत से संभालने लगा।

शिक्षा :- इससे हमें ये शिक्षा मिलती है कि आलस एक बुरी बला है, इसलिए हमें आलस त्यागकर अपना काम समय पर करना चाहिए। 

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