जादुई बीन

हमीरपुर के एक गाँव में होली के समय काफी बड़ा मेला लगा हुआ था। मेले में बहुत तरह के खेल  एवं करतब दिखाए जा रहे थे। दूर-दूर के गाँव से लोग मेला देखने आये थे। उसी मेले में एक सपेरा भी आया था।

सपेरा लोगो से कहता है, क्या सोचते हो ? जाना है कहाँ ?
          सभी लोग आजाओ यहां,
          जादुई बीन है जहां, 
          असली मज़ा पाओगे वहां।

सपेरे की बात सुनकर लोग वहां इकट्ठा होने लगे। देखते ही देखते वहां बहुत ज्यादा भीड़ लग गई। यह सब देखकर सपेरा बहुत खुश हुआ। तभी एक दर्शक सपेरे से कहता है, अरे भाई ! भीड़ ही लगवाओगे, या कुछ करतब भी दिखाओगे ? भला ऐसा कौन सा जादू है इस बीन में ?

सपेरा दर्शक की बातों का जवाब देता है बीन की धुन में मज़े हैं अब,   
          सांप के साथ दर्शक भी नाचेंगे सब।

सभी दर्शक सपेरे से कहते है अच्छा, ऐसी बात है क्या ? पर तुम्हें ये बीन मिली कैसे ? दूर देश से आया था हकीम,
         करेगी इलाज,
         कहकर दे गया ये बीन।

सपेरा बीन बजाना शुरू करता है, थोड़ी ही देर में बीन की धुन से सांप और दर्शक झूमने लगते हैं। सभी दर्शक धुन सुनकर सपेरे के वश में आ जाते हैं।
सपेरा बहुत खुश  है, वाह मेरी बीन दिखा दिया तूने कमाल,
          कर दिया सबको सम्मोहित,
          बना दिया मेरा गुलाम।

सारे दर्शक अब सपेरे की ही बात सुन रहे थे। सपेरा जैसा कहता दर्शक वैसा ही कर रहे थे। दर्शक सपेरे के पास जाकर कहते है, हुकुम करो सरदार ! मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ?
सपेरा  उससे कहता है चल गुलाम तू घर को जा,
          जितना है धन, मेरे पास ले आ।



 
दर्शक उसकी बातों पर ठीक है सरदार, मैं अभी सारा धन ले आता हूँ। तभी दूसरा दर्शक वहाँ आता है और कहता है कहो सरदार ! मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ ? सपेरा उसे कहता है  सुन तू थोड़ा करीब आ, क्या है कारोबार, जल्दी बता।
दर्शक सपेरे से कहता है, मैं सोने का व्यापार करता हूँ। कहने का मतलब है - बहुत बड़ा सुनार हूँ।
सपेरा ख़ुशी से दर्शक से कहता है सोने से है मुझे बहुत लगाव,
                       दूकान की तरफ बढ़ा तू पाँव,
                       ले आ सोना जितना है तिजोरी में,
                       ले जाऊंगा सारा भर के अपनी बोरी में।

हुकुम करो सरदार, हुकुम करो। हम आपके लिए क्या कर सकते हैं ? सभी दर्शक सपेरे से कहते है।   
सपेरा फोड़ दो मटके, तोड़ दो सुराही।
          बचे ना कोई, मचा दो तबाही। 

सभी गुलाम मेले में तबाही मचा देते हैं। कोई दुकानों का सामान तोड़ रहा था तो कोई लोगों को परेशान कर रहा था। आस-पास के दुकानदार यह नज़ारा देख कर हैरान थे। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। दुकानदार सपेरे के पास जाते हैं। और कहते है, तुम ये सब क्यों कर रहे हो?! इसे अभी रोक दो नहीं तो तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा।
सपेरा गुस्से से दुकानदार को देखता है और कहता है जाओ यहां से, नहीं है कोई फायदा।
          बनना है मुझे अमीर, नहीं है कोई गलत इरादा।

दूकानदार  सपेरे को समझाने की कोशिश करता है, भाई ऐसा मत करो। यह सब रोक दो। नहीं तो हमारे बच्चे भूखे मर जायेंगे।

लेकिन सपेरा उनकी एक ना मानता, जाओ यहां से, करों अपना काम।
          नहीं तो बना लूंगा, तुम सबको भी अपना गुलाम।

यह सुनकर सभी दुकानदार डर जाते है और दूर एक पेड़ के नीचे खड़े हो जाते हैं। तभी वहां एक संत आते हैं। और सबसे इस नाश के बारे में पूछते है। दुकानदार उन्हें सारी बात बताते हैं। संत सपेरे के पास जाते हैं।

संत तुम यह सब क्यों कर रहे हो ? इसे अभी रोक दो वर्ना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा ।

सपेरा हैरान होकर कौन है तू, चाहता है क्या ?
     आया है क्यों, जल्दी बता।

संत सपेरे की बातो का जवाब देते है, मैं एक संत हूँ। दूर गुफा में तपस्या कर के आया हूँ। मैं सिर्फ यह चाहता हूँ कि तुम यह सब अभी रोक दो।

सपेरा गुस्से से लाल, मुझे रोकने की कोशिश ना कर,
          नहीं है मुझे तेरा कोई भी डर।

संत गुस्से में अपने कवंदल में से पानी निकल कर उस सपेरे पर फेंकते हैं। पर सपेरे को कुछ नहीं होता।

सपेरा हूँ मैं बलवान, पर नहीं हूँ महान,
         नहीं मार सकता मुझे कोई संत,
         क्योंकि इस बीन में छुपा है मेरा अंत।  

संत समझ जाता है कि उसका अंत बीन से जुड़ा हुआ है। संत उससे बीन छीनने की तरकीब सोचने लगता है। पास में मसाले की दूकान पर बैठा हुआ एक बच्चा यह सब देख रहा था। बच्चा बहुत चालक और शैतान था। वह सपेरे के पास जाता है। और सपेरे वाले से कहता है, सरदार मुझसे कुछ नहीं लोगे क्या आप ?

सपेरा बच्चा है तो क्या हुआ, है तू मेरा गुलाम।
            रख दे मेरे सामने, जो है तेरे पास सामान।

बच्चा अपनी दूकान से मसाले लाता है और सपेरे के सामने रख देता है।

सपेरा उस बच्चे से कहता है, इतनी बड़ी दूकान जिसके चार हैं माले।
सामने लेकर आया है तू बस ये थोड़े से मसाले। बच्चा थोड़ा दुख सा होकर सपेरे से कहता है मेरे पास तो देने के लिए बस ये ही है।

ये कहते ही बच्चा एक थैले में से मिर्ची निकालकर सपेरे की आँखों में फेंक देता है, और बीन छीनकर दूर खड़ा हो जाता है।
  
सपेरा उस बच्चे से कहता है चाहता है भला,
         तो छोड़ दे कला,
          लौटा दे बीन,
          नहीं तो लूंगा छीन।

हूँ मैं छोटा, हूँ मैं शैतान
         समझ के मुझको बच्चा
         कर दी तूने भूल महान। ऐसा उस बच्चे ने उस सपेरे से कहा 

कहीं सपेरा बीन छीन ना ले, इस डर के कारण बच्चा बीन को ऊपर की तरफ फेंकता है - जहां उसका मित्र श्याम खड़ा था । श्याम बीन को पकड़ नहीं पता और बीन नीचे गिर के टूट जाती है।  जैसे ही वह बीन टूटती है, सपेरा भस्म हो जाता है और सभी गुलाम सपेरे के सम्मोहन से मुक्त हो जाते हैं। इस तरह बच्चे की सहायता से सभी लोगों को सपेरे से छुटकारा मिल जाता है।
     
शिक्षा :- हमे इससे ये सबक मिलता है कि बुराई अच्छाई से कभी भी जीत नहीं सकती। बुराई का अंत निश्चित है।

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