किसी गाँव में चंदू नाम का एक आदमी रहता था। वह बहुत ही नेकदिल था। उसकी किराने की छोटी सी दुकान थी। जिससे वह अपना गुज़र-बसर करता था। जिस गाँव में वह रहता था, उस गाँव में पानी की बहुत कमी थी। वहां वर्ष में सिर्फ एक बार ही बारिश होती थी। गाँव के लोगो को पानी भरने के लिए बहुत दूर तक जाना पड़ता था। एक दिन, चंदू अपनी दुकान पर बैठा था। गर्मी से उसका बुरा हाल था। तभी एक बूढ़ा आदमी, गर्मी से बेहाल, बिलकुल थका हारा उसकी दुकान के बाहर आकर बैठता है। कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोलता है, पानी! पानी !
बूढ़े आदमी की बात सुनकर चंदू सोचता है, एक तो वैसे ही गाँव में पानी की कमी है, और आज बहुत मुश्किल से कुछ पानी का बंदोबस्त हो पाया है। अगर मैं इस आदमी को पानी देता हूँ, तो पानी कम हो जायेगा। लेकिन पानी नहीं देना भी बहुत गलत होगा। यह बेचारा इतनी गर्मी में चल कर आया है। मुझे इन्हें पानी तो पिलाना ही चाहिए।
चंदू पास में रखें मटके से पानी लाता है और बूढ़े आदमी को देता है। एक गिलास पानी पीकर भी बूढ़े आदमी की प्यास नहीं बुझती। वह चंदू से और पानी मांगता है। इससे पहले की चंदू बूढ़े आदमी को घड़े से पानी लाकर देता, बूढा आदमी खुद उठकर घड़े का पूरा पानी पी जाता है। चंदू उदास हो कर उस आदमी का मुँह देखता रह जाता है। वह आदमी पानी पी कर तृप्त हो जाता है, और ख़ुशी ख़ुशी चंदू से कहता है, धन्यवाद् बेटा ! तुम बहुत दयालु हो। तुमने इतनी गर्मी में मुझ जैसे प्यासे को पानी पिलाकर बहुत नेक काम किया है। हमेशा ऐसे ही नेक काम करते रहना। भगवान् तुम्हें हमेशा खुश रखेगा।
ऐसा कहकर वह बूढा आदमी वहाँ से चला जाता है। थोड़ी देर के बाद चंदू का भी प्यास से बुरा हाल हो जाता है। वह मटके के पास जाता है। तभी उसे याद आता है। अरे मटके में तो पानी ख़त्म हो गया था। अब मैं क्या करूँ? मुझे तो बहुत प्यास लगी है।
चंदू मटके को उठाकर मुँह तक लाता है। तभी उसमे से थोड़ा पानी निकलता है जिससे उसकी प्यास बुझ जाती है। वह खुश हो जाता है लेकिन वह हैरान हो कर सोचता भी है, इस मटके में तो पानी बिलकुल ख़त्म हो गया था। सारा पानी उस बूढ़े आदमी ने पी लिया था। इसमें और पानी कहाँ से आया? चंदू सोच ही रहा होता है, कि तभी एक आदमी उसकी दुकान पर आता है और कहता है, अरे चंदू भाई ! कैसे हो ? ज़रा यह पर्चा लो और सारा सामान दे दो।
चंदू पर्चा लेता है और जवाब देता है, मैं तो ठीक हूँ। तुम इतनी गर्मी में कैसे आ गए ? और तुम्हारा पैर कैसा है ?
गोपाल चंदू से कहता है, बस ठीक हूँ। अब ये चोट तो ठीक होने नहीं वाली। ये तो ज़िंदगी भर का जख्म है। खैर, ये सामान जल्दी चाहिए था। इसलिए इतनी गर्मी में भी आ गया। घर में कुछ मेहमान आ रहे हैं।
चंदू पर्चा देख, सामान पैक करने लग जाता है। तभी गोपाल बोलता है, चंदू भाई, बहुत गर्मी है। थोड़ा पानी मिलेगा। चंदू शर्मिंदा होकर कहता है, माफ़ करना। थोड़ा सा पानी बचा था। वो मैंने पी लिया। क्या कह रहे हो चंदू भाई?! मटका तो पूरा भरा हुआ है। वो देखो।
चंदू पूरा भरा मटका देख कर चौंक जाता है। अरे-अरे। मैं भी ना! इस गर्मी में मेरा दिमाग बिलकुल भी काम नहीं कर रहा।
चंदू गोपाल को मटके से गिलास भर कर पानी देता है और गोपाल पानी पीकर अपना सामान लिए चला जाता है। गोपाल के जाने के बाद चंदू सोचता है। मटके में पानी कहाँ से आया? मटका तो बिलकुल खाली था।
कुछ देर के बाद गोपाल अपनी बहन को ले कर चंदू के पास आता है और कहता है, चंदू , मेरी बहन को बहुत तेज़ बुखार है। चंदू उसे कहता है तो डॉक्टर के पास ले जाओ। मेरे पास क्यों आये हो?
गोपाल चंदू से कहता है, तुम जल्दी से उस मटके का पानी इसे पिलाओ। ये ठीक हो जाएगी। ये तुम क्या कह रहे हो ?
गोपाल चंदू से कहता है, तुम्हारे उस मटके का पानी पी कर मेरे पैर की चोट ठीक हो गयी जो डॉक्टर के हिसाब से ज़िंदगी भर ठीक नहीं हो सकती थी। उस पानी में जरूर कोई जादू है, जिसे पीने के बाद कोई भी बीमारी ठीक हो सकती है।
चंदू , गोपाल की बहन को मटके का पानी पिलाता है और गोपाल की बहन बिलकुल ठीक हो जाती है। धीरे-धीरे, मटके वाली बात पूरे गाँव में फैल जाती है। कुछ ही समय में सभी लोग बारी-बारी से चंदू के पास अपना इलाज कराने आने लगते हैं। चंदू सभी लोगो की मदद करके बहुत खुश होता है। वह पानी पिलाने के बदले किसी से कुछ नहीं लेता लेकिन लोग अपनी ख़ुशी से उसे कुछ न कुछ दे रहे थे। वह मन ही मन उस बूढ़े आदमी को याद करता है। वह आदमी जरूर कोई फरिश्ता था। जिसकी वजह से ये हुआ।
अब चंदू की दूकान के बाहर हमेशा बीमार लोगो की लाइन लगी रहती थी। वह देख कर चंदू सोचने लगा, अगर एक अमीर आदमी रोज़ इलाज़ के लिए आ जाये तो एक ही बार में मेरे इतने पैसे बन जायेंगे?!
एक दिन, एक बूढ़ा आदमी उसकी दुकान पर आता है और बोलता है, पानी ....... तभी राजा के कुछ सिपाही चंदू के पास आये और कहने लगे, चंदू , अपना वो मटका लेकर जल्दी हमारे साथ चलो। महारानी को चोट लगी है। उन्हें ये पानी पिलाकर ठीक करो।
चंदू उनसे कहता है, भाई ज़रा रुको। पहले मुझे इस बूढ़े आदमी को पानी पिलाने दो। नहीं। तुम पहले हमारे साथ चलो। अगर तुम महारानी का इलाज़ करोगे तो तुम्हे बहुत सारा पैसे और गहने मिलेंगे।
सिपाही की बात सुनकर चंदू के मन में लालच आ जाता है। वह तुरंत मटका उठाकर सिपाहीयों के साथ महल चला जाता है। महल पहुंचकर वो महारानी के लिए जैसे ही मटके में से पानी निकालने लगता है, तो वह देखता है कि मटका खाली है। चंदू हैरान रह जाता है। महाराज चंदू से कहते हैं महाराज चंदू से पूछते है, क्या हुआ चंदू? इतना समय क्यों लग रहा है। जल्दी करो।
चंदू हैरान होकर ऐसा कैसे हो सकता है?! अभी तो मटका भरा हुआ था? यह खाली कैसे हो गया?!
महाराज भी उसेसे पूछते है, ये क्या कह रहे हो चंदू ? तुम्हारे मटके में पानी नहीं है?! अगर तुम्हारे मटके में पानी नहीं था तो तुम यहाँ क्या करने आये हो? निकल जाओ यहाँ से।
चंदू निराश होकर अपना मटका लिए वापिस आ जाता है। वापिस आ कर वह देखता है कि वो बूढ़ा आदमी भी नहीं है जिसे वह पानी पिलाये बगैर ही चला गया था।
चंद मन ही मन सोचता है, अरे ! वो बूढ़ा आदमी कहाँ गया? कहीं ये वही आदमी तो नहीं था जिसकी वजह से यह मटका हमेशा भरा रहता था?! ये मैंने क्या किया?! मैंने लालच में आकर उस सेवा भाव को ख़त्म कर दिया जिसकी वजह से शायद इस मटके में पानी हमेशा भरा रहता था। अब मैं लोगो की मदद कैसे करूँगा?!
चंदू को लालच करने का बहुत पछतावा होता है। अपनी भूल के पश्चाताप के लिए वह सोचता है।
जो पैसा मुझे लोगो के इलाज़ के बदले में मिला है, क्यों ना उस पैसे से मैं इस गाँव में एक डॉक्टर का प्रबंध कर दूँ, जिससे लोगो का इलाज़ हो सके और उन्हें किसी जादू पर निर्भर ना रहना पड़े?! हाँ। यह सही रहेगा।
चंदू अपने गाँव में एक वैद का प्रबंध करवा देता है और अपनी गलती का प्रायश्चित करता है।
शिक्षा :- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए क्योंकि लालच में आकर हम अपने अस्तित्व को खो देते हैं।
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बूढ़े आदमी की बात सुनकर चंदू सोचता है, एक तो वैसे ही गाँव में पानी की कमी है, और आज बहुत मुश्किल से कुछ पानी का बंदोबस्त हो पाया है। अगर मैं इस आदमी को पानी देता हूँ, तो पानी कम हो जायेगा। लेकिन पानी नहीं देना भी बहुत गलत होगा। यह बेचारा इतनी गर्मी में चल कर आया है। मुझे इन्हें पानी तो पिलाना ही चाहिए।
चंदू पास में रखें मटके से पानी लाता है और बूढ़े आदमी को देता है। एक गिलास पानी पीकर भी बूढ़े आदमी की प्यास नहीं बुझती। वह चंदू से और पानी मांगता है। इससे पहले की चंदू बूढ़े आदमी को घड़े से पानी लाकर देता, बूढा आदमी खुद उठकर घड़े का पूरा पानी पी जाता है। चंदू उदास हो कर उस आदमी का मुँह देखता रह जाता है। वह आदमी पानी पी कर तृप्त हो जाता है, और ख़ुशी ख़ुशी चंदू से कहता है, धन्यवाद् बेटा ! तुम बहुत दयालु हो। तुमने इतनी गर्मी में मुझ जैसे प्यासे को पानी पिलाकर बहुत नेक काम किया है। हमेशा ऐसे ही नेक काम करते रहना। भगवान् तुम्हें हमेशा खुश रखेगा।
ऐसा कहकर वह बूढा आदमी वहाँ से चला जाता है। थोड़ी देर के बाद चंदू का भी प्यास से बुरा हाल हो जाता है। वह मटके के पास जाता है। तभी उसे याद आता है। अरे मटके में तो पानी ख़त्म हो गया था। अब मैं क्या करूँ? मुझे तो बहुत प्यास लगी है।
चंदू मटके को उठाकर मुँह तक लाता है। तभी उसमे से थोड़ा पानी निकलता है जिससे उसकी प्यास बुझ जाती है। वह खुश हो जाता है लेकिन वह हैरान हो कर सोचता भी है, इस मटके में तो पानी बिलकुल ख़त्म हो गया था। सारा पानी उस बूढ़े आदमी ने पी लिया था। इसमें और पानी कहाँ से आया? चंदू सोच ही रहा होता है, कि तभी एक आदमी उसकी दुकान पर आता है और कहता है, अरे चंदू भाई ! कैसे हो ? ज़रा यह पर्चा लो और सारा सामान दे दो।
चंदू पर्चा लेता है और जवाब देता है, मैं तो ठीक हूँ। तुम इतनी गर्मी में कैसे आ गए ? और तुम्हारा पैर कैसा है ?
गोपाल चंदू से कहता है, बस ठीक हूँ। अब ये चोट तो ठीक होने नहीं वाली। ये तो ज़िंदगी भर का जख्म है। खैर, ये सामान जल्दी चाहिए था। इसलिए इतनी गर्मी में भी आ गया। घर में कुछ मेहमान आ रहे हैं।
चंदू पर्चा देख, सामान पैक करने लग जाता है। तभी गोपाल बोलता है, चंदू भाई, बहुत गर्मी है। थोड़ा पानी मिलेगा। चंदू शर्मिंदा होकर कहता है, माफ़ करना। थोड़ा सा पानी बचा था। वो मैंने पी लिया। क्या कह रहे हो चंदू भाई?! मटका तो पूरा भरा हुआ है। वो देखो।
चंदू पूरा भरा मटका देख कर चौंक जाता है। अरे-अरे। मैं भी ना! इस गर्मी में मेरा दिमाग बिलकुल भी काम नहीं कर रहा।
चंदू गोपाल को मटके से गिलास भर कर पानी देता है और गोपाल पानी पीकर अपना सामान लिए चला जाता है। गोपाल के जाने के बाद चंदू सोचता है। मटके में पानी कहाँ से आया? मटका तो बिलकुल खाली था।
कुछ देर के बाद गोपाल अपनी बहन को ले कर चंदू के पास आता है और कहता है, चंदू , मेरी बहन को बहुत तेज़ बुखार है। चंदू उसे कहता है तो डॉक्टर के पास ले जाओ। मेरे पास क्यों आये हो?
गोपाल चंदू से कहता है, तुम जल्दी से उस मटके का पानी इसे पिलाओ। ये ठीक हो जाएगी। ये तुम क्या कह रहे हो ?
गोपाल चंदू से कहता है, तुम्हारे उस मटके का पानी पी कर मेरे पैर की चोट ठीक हो गयी जो डॉक्टर के हिसाब से ज़िंदगी भर ठीक नहीं हो सकती थी। उस पानी में जरूर कोई जादू है, जिसे पीने के बाद कोई भी बीमारी ठीक हो सकती है।
चंदू , गोपाल की बहन को मटके का पानी पिलाता है और गोपाल की बहन बिलकुल ठीक हो जाती है। धीरे-धीरे, मटके वाली बात पूरे गाँव में फैल जाती है। कुछ ही समय में सभी लोग बारी-बारी से चंदू के पास अपना इलाज कराने आने लगते हैं। चंदू सभी लोगो की मदद करके बहुत खुश होता है। वह पानी पिलाने के बदले किसी से कुछ नहीं लेता लेकिन लोग अपनी ख़ुशी से उसे कुछ न कुछ दे रहे थे। वह मन ही मन उस बूढ़े आदमी को याद करता है। वह आदमी जरूर कोई फरिश्ता था। जिसकी वजह से ये हुआ।
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एक दिन, एक बूढ़ा आदमी उसकी दुकान पर आता है और बोलता है, पानी ....... तभी राजा के कुछ सिपाही चंदू के पास आये और कहने लगे, चंदू , अपना वो मटका लेकर जल्दी हमारे साथ चलो। महारानी को चोट लगी है। उन्हें ये पानी पिलाकर ठीक करो।
चंदू उनसे कहता है, भाई ज़रा रुको। पहले मुझे इस बूढ़े आदमी को पानी पिलाने दो। नहीं। तुम पहले हमारे साथ चलो। अगर तुम महारानी का इलाज़ करोगे तो तुम्हे बहुत सारा पैसे और गहने मिलेंगे।
सिपाही की बात सुनकर चंदू के मन में लालच आ जाता है। वह तुरंत मटका उठाकर सिपाहीयों के साथ महल चला जाता है। महल पहुंचकर वो महारानी के लिए जैसे ही मटके में से पानी निकालने लगता है, तो वह देखता है कि मटका खाली है। चंदू हैरान रह जाता है। महाराज चंदू से कहते हैं महाराज चंदू से पूछते है, क्या हुआ चंदू? इतना समय क्यों लग रहा है। जल्दी करो।
चंदू हैरान होकर ऐसा कैसे हो सकता है?! अभी तो मटका भरा हुआ था? यह खाली कैसे हो गया?!
महाराज भी उसेसे पूछते है, ये क्या कह रहे हो चंदू ? तुम्हारे मटके में पानी नहीं है?! अगर तुम्हारे मटके में पानी नहीं था तो तुम यहाँ क्या करने आये हो? निकल जाओ यहाँ से।
चंदू निराश होकर अपना मटका लिए वापिस आ जाता है। वापिस आ कर वह देखता है कि वो बूढ़ा आदमी भी नहीं है जिसे वह पानी पिलाये बगैर ही चला गया था।
चंद मन ही मन सोचता है, अरे ! वो बूढ़ा आदमी कहाँ गया? कहीं ये वही आदमी तो नहीं था जिसकी वजह से यह मटका हमेशा भरा रहता था?! ये मैंने क्या किया?! मैंने लालच में आकर उस सेवा भाव को ख़त्म कर दिया जिसकी वजह से शायद इस मटके में पानी हमेशा भरा रहता था। अब मैं लोगो की मदद कैसे करूँगा?!
चंदू को लालच करने का बहुत पछतावा होता है। अपनी भूल के पश्चाताप के लिए वह सोचता है।
जो पैसा मुझे लोगो के इलाज़ के बदले में मिला है, क्यों ना उस पैसे से मैं इस गाँव में एक डॉक्टर का प्रबंध कर दूँ, जिससे लोगो का इलाज़ हो सके और उन्हें किसी जादू पर निर्भर ना रहना पड़े?! हाँ। यह सही रहेगा।
चंदू अपने गाँव में एक वैद का प्रबंध करवा देता है और अपनी गलती का प्रायश्चित करता है।
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