जिद्दी जैगुआर

किसी जंगल में दो जैगुआर रहते थे। उन दोनों का बागीरा नाम का एक बेटा था। क्योंकि वह उनकी इकलौती संतान थी तो वह जो भी मांगता था, दोनों जैगुआर उसे ला कर देते थे। इस वजह से, वह बहुत ही ज़िद्दी हो गया था। एक दिन, आधी रात के समय उसका हिरन का मांस खाने का मन किया ।

बागीरा ने अपनी  माँ से कहा माँ, मेरा हिरन का माँस खाने का मन है। बागीरा की माँ  पर बेटा  मैं इतनी रात को हिरन का माँस कहाँ से लाऊँगी? बागीरा  वो सब मैं नहीं जानता। मुझे हिरन का माँस खाना है तो मतलब खाना है।
बागीरा की माँ  ठीक है, बेटा। मैं कोशिश करती हूँ।

ऐसा कहकर बागीरा की माँ आधी रात को ही हिरन का माँस ढ़ूँढ़ने निकल जाती है। लेकिन बहुत ढूंढने पर भी उसे हिरन नहीं मिलता।

बागीरा की माँ परेशान होकर घर वापस लोट कर आती है! तभी अचानक से उसकी नज़र पेड़ के नीचे खड़े एक मोटे, ताज़े हिरन पर पड़ती है। अरे वाह! ये कितना तगड़ा और मोटा हिरन है। इसे अपने बच्चे के लिए लेकर चलती हूँ। इतना कहकर वह हिरन को दबोच लेती है और उसका शिकार करके उसे अपने साथ गुफा में ले जाती है। फिर बागीरा पेट भरकर उस हिरन को खाता है। अगले दिन, जब बागीरा जंगल में घूम रहा होता है, तो वह एक बड़े और घने वृक्ष के नीचे पहुँचता है। उसे कोई आवाज़ लगाता है

बागीरा को बाज़ आवाज़ लगाकर कहता है अरे ओह मित्र बागीरा ! बागीरा इधर-उधर देखने लगता है। बाज़ अरे इधर-उधर कहाँ देख रहे हो - मैं यहाँ हूँ - पेड़ के ऊपर। बागीरा पेड़ के ऊपर देखता है। वह उसका जिगरी दोस्त बाज़ था। बागीरा खुश होकर बाज़ से कहता है बाज़ भाई - कैसे हो तुम ? बाज़  मैं ठीक हूँ। तुम कैसे हो? बागीरा मैं भी ठीक हूँ। आओ, नीचे आ जाओ।

बाज़ नहीं, मैं यही ठीक हूँ। तुम ऊपर आ जाओ यहाँ रहने में बहुत मज़ा आता है। बागीरा पर तुम तो बहुत ऊपर रहते हो। इतने ऊपर तो मैं नहीं चढ़ सकता। बाज़ कोई बात नहीं तुम मेरे घोंसले के नीचे यहीं पर अपना घर बना लो। बागीरा नहीं नहीं। मैं यहीं नीचे ठीक हूँ। बाज़ नीचे रहने में क्या मज़ा? नीचे तो सब रहते हैं। तुम भी ऊपर रहना शुरू कर दो। चलो, अब मुझे खाने की तैयारी करनी है। बाद में मिलता हूँ।


इतना कहकर, बाज़ चला जाता है। लेकिन बागीरा के मन में पेड़ पर रहने की इच्छा जाग जाती है। बगीरा अपनी गुफा में लौट कर जाता है।

बागीरा अपनी  माँ से कहता है माँ , मैं इस गुफा में रहते-रहते थक चुका हूँ। अब मुझे कहीं और रहना है। बागीरा की माँ  ठीक है बेटा। हम कहीं और गुफा बनाकर रह लेंगे। बागीरा  क्या ! एक और गुफा… मुझे फिर से किसी गुफा में नहीं रहना। मुझे पेड़ पर रहना है। बागीरा की माँ  क्या? पेड़ पर !? पर बेटा हम पेड़ पर नहीं रह सकते। बागीरा  मुझे कुछ नहीं पता। मुझे पेड़ पर ही रहना है। बागीरा की माँ को बहुत गुस्सा आता है और वो गुस्से में बागीरा से कहती है  मैं तुम्हारी रोज़ -रोज़ की ज़िद से तंग आ चुकी हूँ। तुम्हें जैसा ठीक लगे वैसा करो।

अपनी माँ की बात सुनकर बागीरा अपने दोस्त बाज़ के पास चला जाता है। बाज़ अरे! बागीरा भाई यहाँ कैसे ? बागीरा  मैं अपनी गुफा छोड़ कर पेड़ पर रहने आया हूँ।

ऐसा कहते ही बागीरा पेड़ पर चढ़ जाता है। बागीरा को पेड़ पर रहने में मज़ा आ रहा था।

बागीरा  वाह ! तुमने सच कहा था। यहाँ से तो पूरा जंगल दिखाई देता है। बाज़  हाँ, बगीरा भाई। यहां रहने में बहुत मज़ा आता है। तुम यहां आराम से रह सकते हो और तुम्हें किसी चीज़ की जरुरत हो तो मुझे बता देना। बगीरा ठीक है, बाज़ भाई। तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया। अब बागीरा को बहुत ज़्यादा नींद आ रही थी। वह उबासी लेते हुए बोलता है बागीरा  आज काफी थक गया हूँ। थोड़ी देर सो जाता हूँ।

बगीरा को पेड़ पर ही नींद आ जाती है। दूसरी तरफ, बागीरा के माता-पिता उसे ढूंढ रहे थे। पेड़ पर सोते-सोते, जैसे ही बागीरा करवट लेता है, वह धड़ाम से पेड़ से निचे गिर जाता है। इतने ऊँचे पेड़ से गिरने के बाद उसके पैर में मोच आ जाती है। वो बहुत तेज़-तेज़ रोने लगता है। बागीरा  मेरा पैर !!!

बागीरा की आवाज़ सुनकर उसके माता-पिता वहां पहुंच जाते हैं। बागीरा को रोता देखकर उसके माता-पिता घबरा जाते हैं। बागीरा की माँ  ये कैसे हुआ ?? बागीरा  मैं पेड़ से गिर गया माँ। बागीरा की माँ  मैंने तुमसे कहा था - हम पेड़ पर रहने के लिए नहीं बने हैं।बागीरा  मुझे माफ़ कर दो माँ। मैं आज के बाद ऐसी गलती फिर कभी नहीं करूँगा।

बागीरा को अपनी गलती का एहसास हो जाता है और वह ज़िद करना छोड़ देता है।

शिक्षा : हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी ज़िद नहीं करनी चाहिए और हर निर्णय सोच समझ कर लेना चाहिए। 

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