भूतिया आईना भाग-1 में बबली और चीकू अपने मम्मी-पापा के साथ नए घर में शिफ्ट हुए थे जहाँ उन्हें आईने का भूत सता रहा था। लेकिन चीकू की समझदारी और मम्मी-पापा की मदद से वह किसी तरह उस भूत से बच कर भागने में सफल रहते हैं।
महेश अपने परिवार के साथ घर से चले जाने के बाद उस घर को बेच देता हैं। घर के नए ख़रीदार का नाम अवनीश होता है जो अपनी बीवी और बेटे शेखर के साथ उस घर में शिफ्ट हो जाते है। वह तीनों अपने नए घर में आकर बहुत खुश होते है, और घर में इधर-उधर घूमने लगते हैं। घूमते हुए शेखर उस कमरे में पहुँचता है, जहाँ सारे आईने बंद होते हैं।
शेखर कमरे में चारों तरफ देखते हुए कहता है, इस कमरे में इतने सारे आईने क्या कर रहे हैं ? इतना सोचते ही शेखर अपनी मम्मी को इन सभी के बारे में बताने की सोचता है, यह सोचकर शेखर अपनी मम्मी के पास चला जाता है और उन्हें कमरे में रखे आईनों के बारे में बताता है। मम्मी उन सभी आइनों को घर में वापस उनकी जगह पर लगा देती है। और सभी उस घर में आराम से रहने लगते हैं। कुछ दिनों के बाद, रात को जब शेखर अपने कमरे में सो रहा था, तभी उसे एक आवाज़ सुनाई देती है। शेखर उठकर देखता है पर उसे कोई नज़र नहीं आता फिर वो सोचता है कहीं घर में कोई चोर तो नहीं घुस आया ?
ऐसा बोल कर शेखर अपने कमरे की लाइट जलाता है और इधर-उधर देखने लगता है। वह जैसे ही घर में देखने के लिए कमरे से बाहर निकलने वाला होता है - तभी उसे अपने पीछे से आवाज़ सुनाई देती है। शेखर पीछे मुड़कर देखता है तो उसे कुछ नज़र नहीं आता, शेखर अपने कमरे में वापस जाने लगता है की तभी अचानक पीछे से आवाज़ आती है, कहाँ जा रहे हो ? मैं तो यहाँ हूँ।
यह आवाज़ सुनकर शेखर डर जाता है, वह फिर से जैसे ही पीछे मुड़ता है - उसे आईने में एक परछाईं नज़र आती है, जो उससे बात करती है ! परछाईं उससे कहती है मेरे पास आओ ! मुझसे बात करो। मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूँगी। आईने में परछाईं देख शेखर बहुत डर जाता है, और कमरे से बाहर भागने की कोशिश करता है। लेकिन कमरे का दरवाज़ा नहीं खुलता। तभी परछाईं दोबारा बोलती हैं, इधर आओ ! क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे ? मैं बहुत अच्छी हूँ।
लेकिन शेखर बहुत डरा हुआ था ! और डरते हुए कहता है ! तुम मुझसे दोस्ती क्यों करना चाहती हो ? प्लीज मुझे जाने दो। परछाईं को बहुत गुस्सा आता है और वो शेखर से कहती है यहाँ से कोई कहीं नहीं जायेगा।तुम ये बताओ कि मुझसे दोस्ती करोगे या नहीं ? शेखर को समझ नहीं आता की वह क्या करे ! वह अपने सामने से डरावनी परछाईं को बोलते देख डर कर रोने लगता है और बहुत तेज़ी से चिल्लाता है। शेखर के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर मम्मी-पापा भागकर उसके कमरे में आते हैं।
तभी शेखर की मम्मी उससे पूछती है! क्या हुआ बेटा ? तुम चिल्लाये क्यों? शेखर घबराते हुए अपनी मम्मी को सब बात बताता है। शेखर की बात सुनकर उसके मम्मी-पापा आईने के पास जाते हैं और उसमे देखने लगते हैं। लेकिन उन्हें वहां अपने प्रतिबिम्ब के अलावा और कुछ नहीं दिखता।
शेखर के पापा मम्मी उसे समझाते है ! यहाँ कुछ भी नहीं है। तुमने जरूर कोई बुरा सपना देखा होगा। लेकिन शेखर बहुत कोशिश करता है उन्हें समझने की पर उसके मम्मी-पापा उसकी बात नहीं समझते, शेखर की मम्मी उससे कहती है बेटा ! आज तुम हमारे साथ सो जाओ।इस बारे में हम कल बात करेंगे।
इसके बाद शेखर के मम्मी-पापा उसे अपने कमरे में ले जाते हैं। अगली सुबह जब शेखर वापस अपने कमरे में जाता हैं, तो वह परछाईं उसे फिर दिखती है, जिसे देखकर वह डर कर कमरे से बाहर भागता है और हॉल में चला जाता है। शेखर सोच में डूबे हुए सोचता है, यह सब मेरे साथ क्या हो रहा हैं? यह परछाईं कौन है? और मेरे कमरे के आईने में क्या कर रही है?
यह बोलता हुआ शेखर हॉल में घूमने लगता है और वहां टंगे हुए आईने के सामने पहुँचता है। जैसे ही वह आईने में देखता है तो वह डरावनी परछाईं वहां भी उभर आती है। परछाईं शेखर से कहती है मुझसे बच कर कहाँ भाग रहे हो ? में इस घर के हर कोने में जा सकती हूँ - मैं हर उस जगह हूँ, जहाँ जहाँ आईना है। तुम कब तक मुझसे बचोगे ?
शेखर उस परछाई से पूछता है, तुम मेरा पीछा क्यों कर रही हो ? प्लीज मुझे छोड़ दो। वो परछाईं हॅसने लगती है, और कहती है ! ऐसा नहीं हो सकता। तुम्हें मुझसे दोस्तों करनी ही पड़ेगी। शेखर पूछता है लेकिन तुम सिर्फ मुझसे ही दोस्ती क्यों करना चाहती हो ? शेखर की इस बात पर वो परछाई उससे कहती है क्योंकि मैं सिर्फ बच्चों से ही दोस्ती करती हूँ ! और यहाँ तुम ही इकलौते बच्चे हो। शेखर उस परछाई से कहता है नहीं, मुझे तुमसे डर लगता है।
ऐसा कहकर शेखर वहां से भाग जाता है और अपनी मम्मी के पास जाकर छुप जाता है।
शेखर की मम्मी उससे पूछती है क्या हुआ बेटा ? तुम इतने डरे हुए क्यों हो ? मम्मी के पूछने पर शेखर उन्हें परछाईं के बारे में बताता है, जिसे सुनकर मम्मी थोड़ा घबरा जाती हैं। वह शाम को अवनीश को सारी बात बता देती हैं। इस बात पर शेखर के पापा उससे कहते है,- भूत जैसा कुछ नहीं होता ! इन सभी बातों पर भरोसा मत करो ! शेखर ने जरूर कोई डरावना सपना देखा होगा, इसीलिए यह सब उसके दिमाग में चल रहा है और वह सारी बातें तुम्हें बता रहा है।
पापा की बात सुनकर मम्मी भी शेखर की बात पर ध्यान नहीं देती और वह लोग उसकी बात को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। इसी तरह दिन पर दिन बीत्ते चले जाते है और अब परछाईं, शेखर से हर रोज़ बात करने लगती है। एक रात शेखर उस परछाईं से बात करते हुए पूछता है - तुम इस आईने में कैद कैसे हुई ? शेखर के यह पूछने पर परछाईं उदास हो जाती है और शेखर को अपनी कहानी बताने लगती है।
मैं भी तुम्हारी तरह ही एक बच्ची थी। मैं हमेशा सभी के साथ बहुत अच्छे से रहती थी और कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचती थी। लेकिन कभी कोई भी बच्चा मुझसे दोस्ती नहीं करता था और हमेशा हर कोई मेरा मज़ाक बनाता रहता था। एक दिन, उन बच्चों ने मुझसे दोस्ती करने का वादा किया और फिर हम सभी खेलने के लिए इस खाली घर में आ गए ! यहाँ आने के बाद सभी ने कहाँ कि हम आईनों की भूल-भुलैया का खेल खेलेंगे ! और फिर वह सब मुझे आईनों से भरे एक कमरे में बंद करके वहां से चले गए। जिसके थोड़ी देर बाद बहुत तेज़ तूफान और बारिश शुरू हो गए। उसी वजह से शॉट सर्किट हुआ और सारे घर में आग लग गयी। उसी आग में जलकर मेरी मृत्यु हो गयी और उसी अकाल मृत्यु की वजह से मुझे मुक्ति नहीं मिली और मैं इसी घर में रह गयी और आईने में कैद हो गयी।
परछाईं की बातें सुनकर शेखर रोने लगता हैं और रोते हुए उससे बोलता हैं। मुझे लगा था कि तुम बहुत बुरी परछाईं हो और सभी को परेशान करने के लिए यहां रहती हो ! पर तुम तो यहाँ फंसी हुई हो। लेकिन क्या तुम्हारा, इस आईने से बाहर निकल कर आज़ाद होने का मन नहीं करता ? शेखर उस परछाई से पूछता है तुम इस आईने में कब तक कैद रहोगी ? क्या तुम्हें कभी आज़ादी नहीं मिल सकती ?
शेखर की बात सुनकर वो परछाईं कहती है, हाँ मुझे आजादी मिल सकती हैं। अगर कोई नेकदिल और सच्चा इंसान अमावस्या की रात को इस घर के सभी आईने तोड़ दे तो मैं इन आईनों और इस घर से मुक्त हो जाउंगी। अगले दिन शेखर अपनी मम्मी से अमावस्या के बारे में पूछता है। मम्मी, अमावस्या कब आएगी ?
शेखर की मम्मी उससे कहती है तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो ? तो शेखर अपनी मम्मी से कहता है,- पहले आप मुझे बताइये अमावस्या कब आती है ? शेखर की मां उसे बताती है बेटा, अमावस्या दो दिन बाद ही है।
मम्मी की बात सुनकर शेखर बहुत खुश होता है और फिर दो दिन के बाद, अपने मम्मी-पापा को सारी बात बताता है और उन्हें अपनी बात पर विश्वास करने के लिए कहता है। वह सभी आईनों को घर की छत पर इकट्ठा करता है और एक-एक करके सभी आईने तोड़ देता हैं। सभी आइनो के टूटने के बाद एक धुआँ निकलता है और धन्यवाद शेखर कहते हुए आसमान में कहीं ग़ायब हो जाता है। यह सब देखकर शेखर के मम्मी-पापा हैरान रह जाते हैं और शेखर को गले लगा लेते हैं। इसके बाद वह सभी उस घर में ख़ुशी और शांति से रहने लगते हैं।
शिक्षा :- हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी भी कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की जान खतरे में पड़ जाए। बल्कि हमेशा दुसरो की मदत करनी चाहिए।
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महेश अपने परिवार के साथ घर से चले जाने के बाद उस घर को बेच देता हैं। घर के नए ख़रीदार का नाम अवनीश होता है जो अपनी बीवी और बेटे शेखर के साथ उस घर में शिफ्ट हो जाते है। वह तीनों अपने नए घर में आकर बहुत खुश होते है, और घर में इधर-उधर घूमने लगते हैं। घूमते हुए शेखर उस कमरे में पहुँचता है, जहाँ सारे आईने बंद होते हैं।
शेखर कमरे में चारों तरफ देखते हुए कहता है, इस कमरे में इतने सारे आईने क्या कर रहे हैं ? इतना सोचते ही शेखर अपनी मम्मी को इन सभी के बारे में बताने की सोचता है, यह सोचकर शेखर अपनी मम्मी के पास चला जाता है और उन्हें कमरे में रखे आईनों के बारे में बताता है। मम्मी उन सभी आइनों को घर में वापस उनकी जगह पर लगा देती है। और सभी उस घर में आराम से रहने लगते हैं। कुछ दिनों के बाद, रात को जब शेखर अपने कमरे में सो रहा था, तभी उसे एक आवाज़ सुनाई देती है। शेखर उठकर देखता है पर उसे कोई नज़र नहीं आता फिर वो सोचता है कहीं घर में कोई चोर तो नहीं घुस आया ?
ऐसा बोल कर शेखर अपने कमरे की लाइट जलाता है और इधर-उधर देखने लगता है। वह जैसे ही घर में देखने के लिए कमरे से बाहर निकलने वाला होता है - तभी उसे अपने पीछे से आवाज़ सुनाई देती है। शेखर पीछे मुड़कर देखता है तो उसे कुछ नज़र नहीं आता, शेखर अपने कमरे में वापस जाने लगता है की तभी अचानक पीछे से आवाज़ आती है, कहाँ जा रहे हो ? मैं तो यहाँ हूँ।
यह आवाज़ सुनकर शेखर डर जाता है, वह फिर से जैसे ही पीछे मुड़ता है - उसे आईने में एक परछाईं नज़र आती है, जो उससे बात करती है ! परछाईं उससे कहती है मेरे पास आओ ! मुझसे बात करो। मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूँगी। आईने में परछाईं देख शेखर बहुत डर जाता है, और कमरे से बाहर भागने की कोशिश करता है। लेकिन कमरे का दरवाज़ा नहीं खुलता। तभी परछाईं दोबारा बोलती हैं, इधर आओ ! क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे ? मैं बहुत अच्छी हूँ।
लेकिन शेखर बहुत डरा हुआ था ! और डरते हुए कहता है ! तुम मुझसे दोस्ती क्यों करना चाहती हो ? प्लीज मुझे जाने दो। परछाईं को बहुत गुस्सा आता है और वो शेखर से कहती है यहाँ से कोई कहीं नहीं जायेगा।तुम ये बताओ कि मुझसे दोस्ती करोगे या नहीं ? शेखर को समझ नहीं आता की वह क्या करे ! वह अपने सामने से डरावनी परछाईं को बोलते देख डर कर रोने लगता है और बहुत तेज़ी से चिल्लाता है। शेखर के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर मम्मी-पापा भागकर उसके कमरे में आते हैं।
तभी शेखर की मम्मी उससे पूछती है! क्या हुआ बेटा ? तुम चिल्लाये क्यों? शेखर घबराते हुए अपनी मम्मी को सब बात बताता है। शेखर की बात सुनकर उसके मम्मी-पापा आईने के पास जाते हैं और उसमे देखने लगते हैं। लेकिन उन्हें वहां अपने प्रतिबिम्ब के अलावा और कुछ नहीं दिखता।
शेखर के पापा मम्मी उसे समझाते है ! यहाँ कुछ भी नहीं है। तुमने जरूर कोई बुरा सपना देखा होगा। लेकिन शेखर बहुत कोशिश करता है उन्हें समझने की पर उसके मम्मी-पापा उसकी बात नहीं समझते, शेखर की मम्मी उससे कहती है बेटा ! आज तुम हमारे साथ सो जाओ।इस बारे में हम कल बात करेंगे।
इसके बाद शेखर के मम्मी-पापा उसे अपने कमरे में ले जाते हैं। अगली सुबह जब शेखर वापस अपने कमरे में जाता हैं, तो वह परछाईं उसे फिर दिखती है, जिसे देखकर वह डर कर कमरे से बाहर भागता है और हॉल में चला जाता है। शेखर सोच में डूबे हुए सोचता है, यह सब मेरे साथ क्या हो रहा हैं? यह परछाईं कौन है? और मेरे कमरे के आईने में क्या कर रही है?
यह बोलता हुआ शेखर हॉल में घूमने लगता है और वहां टंगे हुए आईने के सामने पहुँचता है। जैसे ही वह आईने में देखता है तो वह डरावनी परछाईं वहां भी उभर आती है। परछाईं शेखर से कहती है मुझसे बच कर कहाँ भाग रहे हो ? में इस घर के हर कोने में जा सकती हूँ - मैं हर उस जगह हूँ, जहाँ जहाँ आईना है। तुम कब तक मुझसे बचोगे ?
शेखर उस परछाई से पूछता है, तुम मेरा पीछा क्यों कर रही हो ? प्लीज मुझे छोड़ दो। वो परछाईं हॅसने लगती है, और कहती है ! ऐसा नहीं हो सकता। तुम्हें मुझसे दोस्तों करनी ही पड़ेगी। शेखर पूछता है लेकिन तुम सिर्फ मुझसे ही दोस्ती क्यों करना चाहती हो ? शेखर की इस बात पर वो परछाई उससे कहती है क्योंकि मैं सिर्फ बच्चों से ही दोस्ती करती हूँ ! और यहाँ तुम ही इकलौते बच्चे हो। शेखर उस परछाई से कहता है नहीं, मुझे तुमसे डर लगता है।
ऐसा कहकर शेखर वहां से भाग जाता है और अपनी मम्मी के पास जाकर छुप जाता है।
शेखर की मम्मी उससे पूछती है क्या हुआ बेटा ? तुम इतने डरे हुए क्यों हो ? मम्मी के पूछने पर शेखर उन्हें परछाईं के बारे में बताता है, जिसे सुनकर मम्मी थोड़ा घबरा जाती हैं। वह शाम को अवनीश को सारी बात बता देती हैं। इस बात पर शेखर के पापा उससे कहते है,- भूत जैसा कुछ नहीं होता ! इन सभी बातों पर भरोसा मत करो ! शेखर ने जरूर कोई डरावना सपना देखा होगा, इसीलिए यह सब उसके दिमाग में चल रहा है और वह सारी बातें तुम्हें बता रहा है।
पापा की बात सुनकर मम्मी भी शेखर की बात पर ध्यान नहीं देती और वह लोग उसकी बात को नज़र अंदाज़ कर देते हैं। इसी तरह दिन पर दिन बीत्ते चले जाते है और अब परछाईं, शेखर से हर रोज़ बात करने लगती है। एक रात शेखर उस परछाईं से बात करते हुए पूछता है - तुम इस आईने में कैद कैसे हुई ? शेखर के यह पूछने पर परछाईं उदास हो जाती है और शेखर को अपनी कहानी बताने लगती है।
मैं भी तुम्हारी तरह ही एक बच्ची थी। मैं हमेशा सभी के साथ बहुत अच्छे से रहती थी और कभी भी किसी का बुरा नहीं सोचती थी। लेकिन कभी कोई भी बच्चा मुझसे दोस्ती नहीं करता था और हमेशा हर कोई मेरा मज़ाक बनाता रहता था। एक दिन, उन बच्चों ने मुझसे दोस्ती करने का वादा किया और फिर हम सभी खेलने के लिए इस खाली घर में आ गए ! यहाँ आने के बाद सभी ने कहाँ कि हम आईनों की भूल-भुलैया का खेल खेलेंगे ! और फिर वह सब मुझे आईनों से भरे एक कमरे में बंद करके वहां से चले गए। जिसके थोड़ी देर बाद बहुत तेज़ तूफान और बारिश शुरू हो गए। उसी वजह से शॉट सर्किट हुआ और सारे घर में आग लग गयी। उसी आग में जलकर मेरी मृत्यु हो गयी और उसी अकाल मृत्यु की वजह से मुझे मुक्ति नहीं मिली और मैं इसी घर में रह गयी और आईने में कैद हो गयी।
परछाईं की बातें सुनकर शेखर रोने लगता हैं और रोते हुए उससे बोलता हैं। मुझे लगा था कि तुम बहुत बुरी परछाईं हो और सभी को परेशान करने के लिए यहां रहती हो ! पर तुम तो यहाँ फंसी हुई हो। लेकिन क्या तुम्हारा, इस आईने से बाहर निकल कर आज़ाद होने का मन नहीं करता ? शेखर उस परछाई से पूछता है तुम इस आईने में कब तक कैद रहोगी ? क्या तुम्हें कभी आज़ादी नहीं मिल सकती ?
शेखर की बात सुनकर वो परछाईं कहती है, हाँ मुझे आजादी मिल सकती हैं। अगर कोई नेकदिल और सच्चा इंसान अमावस्या की रात को इस घर के सभी आईने तोड़ दे तो मैं इन आईनों और इस घर से मुक्त हो जाउंगी। अगले दिन शेखर अपनी मम्मी से अमावस्या के बारे में पूछता है। मम्मी, अमावस्या कब आएगी ?
शेखर की मम्मी उससे कहती है तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो ? तो शेखर अपनी मम्मी से कहता है,- पहले आप मुझे बताइये अमावस्या कब आती है ? शेखर की मां उसे बताती है बेटा, अमावस्या दो दिन बाद ही है।
मम्मी की बात सुनकर शेखर बहुत खुश होता है और फिर दो दिन के बाद, अपने मम्मी-पापा को सारी बात बताता है और उन्हें अपनी बात पर विश्वास करने के लिए कहता है। वह सभी आईनों को घर की छत पर इकट्ठा करता है और एक-एक करके सभी आईने तोड़ देता हैं। सभी आइनो के टूटने के बाद एक धुआँ निकलता है और धन्यवाद शेखर कहते हुए आसमान में कहीं ग़ायब हो जाता है। यह सब देखकर शेखर के मम्मी-पापा हैरान रह जाते हैं और शेखर को गले लगा लेते हैं। इसके बाद वह सभी उस घर में ख़ुशी और शांति से रहने लगते हैं।
शिक्षा :- हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमे कभी भी कुछ ऐसा नहीं करना चाहिए, जिससे किसी की जान खतरे में पड़ जाए। बल्कि हमेशा दुसरो की मदत करनी चाहिए।
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