रूप नगर के जंगल में एक साधु बाबा रहते थे। साधु बाबा बहुत दयालु और ज्ञानी थे। वह जंगल के सभी जानवरों का बहुत ध्यान रखते थे। उस जंगल में एक बंदर भी रहता था, जो सभी जानवरों की नक़ल करता था। जानवर उसकी इस आदत से बहुत परेशान थे, इसलिए वह सभी उसे खुद से अलग मानते थे। उससे कोई मित्र्ता नहीं करता था।
इसलिए बंदर एक दिन साधु बाबा के पास गया और बोला, “प्रणाम बाबा!” साधु ने जवाब दिया, “खुश रहो ! - क्या हुआ तुम इतने दुखी क्यों हो? इसपर बंदर ने दुखी होकर कहा, “बाबा, मुझे इस जंगल के जानवर खुद से अलग मानते हैं। क्योंकि मैं इंसानों की तरह दो पैरों पर चल सकता हूँ, जिसके कारण जंगल के अन्य जानवर ना तो मुझसे मित्रता करते हैं और ना मेरी कोई बात सुनते हैं। मैं तो उनसे मित्र्ता करना चाहता हूँ।” इसपर साधु ने सोचते हुए कहा, “हम्म…. तुम चिंता मत करो। मैं इसका कोई ना कोई हल ज़रूर निकाल लूँगा।”
साधु बाबा अपनी कुटिया के अंदर गए और कुछ देर बाद एक बाँसुरी ले कर आये और बोले, “यह लो, तुम इस बाँसुरी को रख लो।” बंदर ने उस बाँसुरी को देखते हुए कहा, “पर बाबा, मैं इस बाँसुरी का क्या करूँगा?” साधु ने जवाब दिया, “यह कोई साधारण बाँसुरी नहीं है। यह एक जादुई बाँसुरी है। जब तुम इसे बजाओगे, तो सामने खड़ा जीव सम्मोहित हो जायेगा।” इसपर बंदर ने चौंकते हुए कहा, “हैं...... - जादुई बाँसुरी! क्या आप सच कह रहे हो?”
बंदर साधू बाबा से बाँसुरी लेकर ख़ुशी-ख़ुशी अपने घर चला गया। घर पहुंच कर बंदर ने कुछ देर आराम करने के बारे में सोचा, “हह इस बाँसुरी का कमाल मैं शाम को देखूँगा, अभी मुझे कुछ देर आराम कर लेना चाहिए।” बंदर बाँसुरी को रख कर आराम से सो गया। वह उस बाँसुरी का कमाल देखने के लिए इतना उत्साहित था कि उसे सपने में भी सिर्फ बाँसुरी ही नज़र आती थी। जैसे ही दिन ढल गया बंदर जंगल में घूमने के लिए निकल गया और बोला, “आज तो मुझे बहुत मज़ा आने वाला है, अब मैं उन सबको मज़ा चखाऊंगा - जो मुझे खुद से अलग समझते हैं।”
बंदर को सामने से लोमड़ी, सियार और खरगोश आते हुए दिखाई दिए। उसने उन सभी जानवरों पर बाँसुरी को इस्तेमाल करने की योजना बनाई और कहा, “हम्म…. लोमड़ी, सियार और खरगोश तीनों एक साथ - क्यों ना इन्हें अपने बस में किया जाये !? बड़ा मज़ा आएगा।”
बंदर ने बाँसुरी बजाना शुरू कर दिया और उसकी बाँसुरी सुनकर लोमड़ी ने बोला, “क्या बात है बंदर भाई - तुम तो बहुत अच्छी बाँसुरी बजा लेते हो। पूरे जंगल में ऐसा हुनर किसी के पास नहीं है।” इसपर बंदर ने जवाब दिया, “हाँ, ये तो तुमने बिलकुल सही कहा - पर फिर भी इस जंगल के जानवर मुझसे मित्र्ता नहीं करते।” सियार ने जवाब दिया, “नहीं-नहीं बंदर भाई, ऐसी बात नहीं है - हम सब तुम्हारे मित्र ही तो हैं, फिर और किसी की क्या ज़रूरत !?” बंदर सोच में पड़ गया और खुद से कहने लगा, “आज से पहले तो इन जानवरों ने मेरी तारीफ़ कभी नहीं की, फिर आज अचानक इन्हें क्या हो गया? हम्म..... लगता है यह सब इस जादुई बाँसुरी का कमाल है।”
इसपर खरगोश ने बंदर को देखते हुए पूछा, “क्या हुआ भाई ? तुम किस सोच में पड़ गए ?” बंदर ने जवाब दिया, “नहीं कुछ भी तो नहीं - मैं तो बस इस जंगल के जानवरों को परेशान करने के बारे में सोच रहा था।” लोमड़ी ने कहा, “अरे ये तो बहुत आसान है - तुम्हारा ये काम, हम सब मिलकर कर देंगे । तुम बस आराम करो।”
पेड़ पर बैठी कोयल रानी ने यह सब देख लिया। लोमड़ी, सियार और खरगोश ने पूरे जंगल में कोहराम मचा दिया था। सभी जानवर बहुत परेशान और चिंतित हो गए थे। तभी वहां कोयल रानी आयी। उसने सभी जानवरों को बंदर और उस जादुई बाँसुरी के बारे में विस्तार से बता दिया और कहा, “महाराज ! हमें किसी तरह उस बाँसुरी को बंदर से छीनना होगा।” इसपर शेर ने जवाब दिया, “वो बंदर इतना शैतान है, - उससे बाँसुरी लेना बहुत मुश्किल है। हमे इस समस्या का कुछ और हल निकालना होगा।” कोयल ने कहा, “फिर तो महाराज एक ही हल है - हम सबको साधु बाबा से सहायता लेनी चाहिए।”
कोयल रानी की बात सुनकर सभी जानवर साधु बाबा के पास गए। जानवरों को परेशान देखकर साधु बाबा ने उनसे पूछा, “क्या हुआ ? तुम सब इतने दुखी क्यों हो?” हाथी ने जवाब दिया, “वो बंदर के हाथ ना जाने कहाँ से एक जादुई बाँसुरी लग गई है, जिसकी मदद से वो जंगल के अन्य जानवरों अपने बस में कर रहा है।” यह सुनकर बाबा ने कहा, “वो बाँसुरी तो मैंने ही बंदर को दी थी। पर वो उस बाँसुरी का प्रयोग इतने गलत तरीके से करेगा, इसका तो मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था। इस समस्या का एक ही उपाय है - हमें किसी तरह उस बंदर से जादुई बाँसुरी को वापस ले कर तोड़ना होगा।”
सभी जानवर और साधु बाबा सोच में पड़ गए। काफी देर तक सोचने के बाद हाथी को एक तरकीब सूझी और वो बोला, “मेरे पास एक तरकीब है - हम सब जानते हैं, कि बंदर को दूसरे जानवरों की नक़ल करने की आदत है, तो क्यों ना हम उसकी इस आदत का फायदा उठाये !?” इसपर कोयल रानी ने कहा, “महाराज - वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिये, आप बस उस बंदर को दंड देने की तैयारी कीजिये।”
ऐसा कहकर कोयल रानी उड़ते हुए सीधे बंदर के पास गयी और बोली, “बंदर भाई - मैंने सुना है, की आप हर काम बहुत आसानी से कर लेते हैं।” बंदर ने जवाब दिया, “हाँ, तुमने बिलकुल सही सुना है। मेरे लिए हर काम आसान है।” इसपर कोयल रानी ने कहा, “अगर ऐसी बात है, तो मेरी तरह उड़ के दिखाओ।” बंदर ने हैरानी से बोला, “हैं...... पर मेरे तो पंख ही नहीं हैं, और बिना पंख के तो तुम भी नहीं उड़ सकती।”
कोयल ने कहा, “अच्छा, अगर ऐसी बात है, तो तुम वो करो - जो मैं अब करने वाली हूँ।” ऐसा कहकर कोयल ने पास में पड़ी लकड़ी को उठाया और उसे बीच में से तोड़ दिया। यह देखकर बंदर भी अपने आस-पास देखने लगा। पर उसे कोई लकड़ी नज़र नहीं आयी। इसलिए बंदर ने अपनी जादुई बाँसुरी को उठाया और उसे बीच में से तोड़ दिया। जैसे ही उसने बाँसुरी को तोड़ा, सभी जानवर उसके सम्मोहन से मुक्त हो गए। इस तरह कोयल ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल कर जंगल के सभी जानवरों को शैतान बंदर से बचा लिया और प्रशंसा का पात्र बनी। शेर ने बंदर को जंगल से बाहर निकाल दिया और सभी जानवरों को उसकी शरारतों से भी छुटकारा मिल गया। सभी जानवर ख़ुशी-ख़ुशी जंगल में रहने लगे।
शिक्षा- हमें अक्ल का इस्तेमाल किये बिना नक़ल नहीं करनी चाहिए।
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