पंचतंत्र की कहानी - श्रापित दानव


सुंदरवन जंगल में बहुत सारे जानवर रहते थे। जिनके साथ बालू नाम का एक आदिमानव भी रहता था। बालू सभी जानवरों की बोली जानता था इसलिए वह जंगल में बहुत खास था। एक दिन जंगल में बहुत बड़ा दानव आया वह बहुत ख़ूँख़ार था। उसके सामने जो भी जानवर आता वह उसे तुरंत खा जाता। सभी जानवर दानव को देखते ही अपनी जान बचने के लिए यहाँ-वहां भाग रहे थे।  तभी एक खरगोश दानव के हाथ आ गया और दानव ने उसे खा लिया। 

खरगोश को खाने के बाद दानव बाकि जानवरों की तरफ बढ़ने लगा। सभी जानवर डर कर भागे-भागे बालू के पास गए। सबको अपने पास आता हुए देख बालू ने पूछा, “अरे! क्या हुआ? तुम सब इतना परेशान क्यों हो।” इसपर शेर ने जवाब दिया, “बालू भाई!! जंगल में एक दानव आ गया है। वह सभी जानवरों को मारकर खा रहा है।” बालू ने उस दानव के पास जाने के लिए कहा तभी शेर ने कहा, “नहीं नहीं वह बहुत भयंकर और खतरनाक है वह तुम्हें भी खा जाएगा।” इसपर बालू ने कहा, “नही वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा तुम बस मुझे उसके पास ले चलो।” फिर बंदर उसे दानव के पास लेकर गया। 





बंदर और बालू दानव के पास गए। बालू ने दानव से पूछा, “तुम कौन हो? जंगल के जानवरों को क्यों खा रहे हो?” इसपर दानव ने जवाब दिया, “मैं दूर गुफा में रहने वाला दानव हूँ। मैंने बहुत समय से कुछ नहीं खाया है। इसलिए मैं बहुत भूखा हूँ। अपनी भूख मिटाने के लिए मैं जानवरों को खा रहा हूँ। लेकिन अब मैं तुम्हें खा कर अपनी भूख मिटाऊंगा। यह सुनकर बालू बोला, “नहीं नहीं तुमने तबसे कितने जानवरों को मार कर खाया लिया है। अभी-अभी तुमने एक खरगोश को खाया है। आखिर तुम्हें इतनी जल्दी भूख कैसे लगा गयी ?”

इसपर दानव ने बोला, “तुम नहीं जानते मैं कितने समय से भूखा हूँ। एक-दो खरगोश खाने से थोड़ी ही मेरी भूख शांत होगी। मेरी भूख सिर्फ तालाब के मगरमच्छ ही मिटा सकते है। अगर तुम तालाब से मेरे लिए दो मगरमच्छ ले आओ। तो मैं इस जंगल के जानवरों को नहीं खाऊंगा। पर ध्यान रहे अगर तुम मगरमच्छ नहीं ला पाये तो सबसे पहले मैं तुम्हें खाऊंगा। बालू ने मगरमच्छ लाने को हाँ कह दिया और वो दोनों साथ में तालाब तक गए। 


जैसे ही बालू और दानव तालाब तक पहुंचे। दानव एक पेड़ के निचे बैठ गया। और बालू को तालाब में भेज दिया। बालू ने देखा की तालाब में सिर्फ एक ही मगरमच्छ था। यह देखकर बालू ने मगरमच्छ से पूछा, “इस तालाब के बाकि मगरमच्छ कहाँ है?” यह सुनकर मगरमच्छ ने बोला, “इस तालाब में सिर्फ मैं रहता हूँ।” बालू यह देखकर दुखी हो गया और बोला, “पर मुझे तो दानव ने दो मगरमच्छ लाने के लिए कहा है।”


यह सुनकर मगरमच्छ बोला, “अच्छा तो तुम्हें दानव ने भेजा है। क्या तुमने नहीं सोचा की दानव ने तुम्हें मगरमच्छ लेने के लिए क्यों भेजा है।” इसपर बालू जवाब दिया, “ क्योंकि शायद वह तैरना नहीं जानता।” मगरमच्छ ने बोला, “ नहीं वह तैरना तो जानता है, लेकिन एक संत के श्राप के कारण वह इसमें तो क्या किसी भी तालाब में नहीं तैर सकता। 

यह सुनकर बालू को एक तरकीब आयी और मगरमच्छ से मदद मांगी, “तुम मुझे अपनी पीट पर बिठा कर तालाब के उस पर ले जाओ।” मगरमच्छ बालू को तालाब के पार ले गया। 

बालू ने दानव को बुलाया, “दानव भाई मैंने मगरमच्छ पकड़ लिया है। पर इसे खाने के लिए तुम्हें तालाब के इस पार आना होगा नहीं तो मगरमच्छ पानी में वापिस चला जाएगा। मगरमच्छ को देखते ही दानव के मुँह में पानी आ गया। और वह यह भूल गया की तालाब के अंदर जाने से वो डूब जाएगा। दानव लालच में आकर तालाब के अंदर चला गया और डूब कर मर गया। इस तरह जंगल के जानवरों को दानव से छुटकारा मिल गया। उन सभी ने बालू का ध्यानवाद करा। 


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