पंचतंत्र की कहानी - भूतिया पेड़

किसी जंगल में बहुत सारे जानवर मिल-जुल कर रहते थे। सभी जानवर एक दूसरे की बहुत सहायता करते थे। उसी जंगल में एक घना पेड़ था। सभी जानवर पेड़ से दूर रहते थे क्योंकि सबका यह मानना था कि उस पेड़ पर भूत रहता है। एक दिन, जंगल में रहने के लिए भालू आया, “मैं इस जंगल में आ तो गया मगर अपनी गुफा कहाँ बनाऊं?”

भालू चलते-चलते पेड़ के पास पहुंचा। भालू ने गुफा बनाने का काम शुरू कर दिया कि तभी वहां बंदर और हाथी आये और बोले, “अरे भालू भाई, तुम यहां अकेले क्या कर रहे हो?” इसपर भालू ने जवाब देते हुए कहा, “मैं यहां रहने के लिए गुफा बना रहा हूँ।” बंदर ने कहा, “पर इस पेड़ पर भूत रहता है। तुम मेरे घर के नीचे अपनी गुफा बना लो, वहां तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी।  

तीनों वहाँ से चले जाते हैं। भालू ने अपनी गुफा ठीक उसी पेड़ के नीचे बनाई जिस पेड़ पर बंदर रहता था। भालू निश्चिंत होकर वहां रहने लगा। एक दिन भालू जंगल में घूमने के लिए निकला, घूमते-घूमते भालू उसी पेड़ के नीचे जा पहुँचा। भालू ने कहा, “अगर इस पेड़ पर भूत रहता है तो वह मुझे इतने दिन से दिखाई क्यों नहीं दिया ? मुझे लगता है यहां ज़रूर कुछ गड़बड़ है।”


भालू के ऐसा कहते ही पेड़ के ऊपर से आवाज़ आयी, “तुम यहां आ तो गए हो पर जा नहीं पाओगे, आज रात मैं तुम्हें खा लूँगा।” भालू डरकर वहां से भाग गया। गुफा में पहुंच कर भालू ने बंदर को बुलाया, “बंदर भइया, मैने अभी भूत देखा, वहीं उसी पेड़ के नीचे।” इसपर बंदर ने चौंकते हुए कहा, “क्या… भूत ! मैने तुम्हें वहां अकेले जाने से मना किया था। तुम अभी इस जंगल में नए हो, वो भूत बहुत खतरनाक है। उसने पहले भी बहुत जानवरों को नुक्सान पहुंचाया है।” 

भालू अब उस पेड़ के पास कभी अकेला नहीं जाता था। एक दिन भालू को जंगल में गोरिल्ला दिखा। भालू उसके पीछे चल पड़ा। कुछ दूर जाने के बाद भालू ने देखा की गोरिल्ला उसी पेड़ पर चढ़ गया जिस पेड़ पर भूत रहता था। भालू बंदर के पास गया, “बंदर भाई, मैने अभी-अभी एक गोरिल्ले को भूत वाले पेड़ पर चढ़ते हुए देखा, शायद वह इस जंगल में नया है। 

बंदर ने कहा, “पर गोरिल्ला को तो उसकी दुष्टता के कारण काफी समय पहले इस जंगल से निकाल दिया था।”
बंदर सोच में पड़ गया। वह ये समझ गया, की पेड़ के भूत के पीछे कोई गहरा राज़ छुपा था। बंदर रात को भूत का पता लगाने गया। उसने देखा कि, गोरिल्ला ही भूत बनकर जानवरों को डराता था। बंदर को थोड़ा सोचने के बाद एक तरकीब सूझी। वह पास के पेड़ पर छुपकर चिल्लाने लगा, “बहुत दिनों के बाद किसी गोरिल्ले की खुशबू आ रही है। आज तो पेट भरकर खाऊंगा और यह गोरिल्ला तो मुझे देख भी नहीं सकता क्योंकि मैं तो भूत हूँ।” 

गोरिल्ला यह सब सुनकर डर गया, उसने सभी जंगल के जानवरों को इकट्ठा किया। गोरिल्ला ने उन्हें सारी बात बता दी। बंदर अभी भी उसी तरह से चिल्लाया, “आज तो गोरिल्ले का माँस खा कर ही पेट भरूंगा। इसपर शेर ने कहा, “पर भूत तो इस पेड़ पर रहता था, फिर आवाज़ इस पेड़ से कैसे आ रही है?!” 

गोरिल्ला बोला, “महाराज पेड़ पर कोई भूत नहीं रहता, आपने मुझे जंगल से निकाल दिया था इसलिए मैं इस पेड़ पर आप सब से छुप कर रहता था। सभी जानवरों को मैं ही भूत बनकर डराता हूँ, जिससे कोई यहां मुझे देख ना सके। लेकिन अब यहां सचमुच का भूत आ गया है।” ये सब सुनते ही बंदर नीचे आ गया और उसने सबको बताया, “यहां कोई भूत नहीं रहता, पेड़ पर रहने वाले भूत का सच सामने लाने के लिए ही मैं भूत बनकर इसे डरा रहा था, ठीक वैसे ही जैसे इसने हम सबको डराया था।’ 

गोरिल्ले का झूठ पकड़ा गया और उसे जंगल से बाहर निकाल दिया गया। इस तरह सभी जानवरों को पेड़ के भूत से छुटकारा मिल गया। वह सब ख़ुशी, से बिना डरे जंगल में रहने लगे।    

शिक्षा -  हमें डर का सामना बहादुरी से करना चाहिए।
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