नैतिक कहानियाँ - जादुई जूते

बहुत समय पहले की बात हैं किसी गाँव में एक छोटी सी लड़की रहती थी जिसका नाम पिंकी था। वह बहुत ही बुद्धिमान और मेहनती लड़की थी। वह हमेशा अपने मम्मी पापा की उनके काम में मदद करती थी। 

एक दिन की बात है, पिंकी घर में अकेली थी, तभी एक साधू आते है, उन्हें देखकर पिंकी पूछती है, “आप कौन हो?”
साधू कहते है, “बेटी! मै एक साधू हूँ, और काफी दिनों से भूखा हूँ , क्या कुछ खाने को मिलेगा ?” “जी जरूर बाबा” यह कहकर पिंकी साधू के लिए खाना ले कर आती है। खाना खा कर साधू बहुत खुश होते है और कहते है, “मै तुम्हारी सेवा से बहुत खुश हूँ, इसलिए मै तुम्हे एक उपहार देना चाहता हूँ।”

साधू अपना एक हाथ आगे बढ़ाते है और तेज़ रोशनी के साथ उनके हाथ में एक जोड़ी जूते आ जाते है। जूतों को पिंकी की तरफ बढ़ाते हुए वह कहते है, “ये लो बेटी तुम्हारा उपहार।” पिंकी जूतों को ले लेती है और कहती है, “जूते!” यह देखकर साधू पिंकी से कहते है, “बेटी! ये कोई साधारण जूते नहीं हैं, ये जादुई जूते हैं। इन्हें पहनकर तुम जितने कदम कदम चलोगी तुम्हे उतने ही सोने के सिक्के मिलेगे।”


यह सुनकर पिंकी ख़ुशी से बोलती है, “वाह , ये तो बहुत अच्छा है।” तभी साधू कहते है, “लेकिन एक बात का ख्याल रखना की तुम जितने कदम चलोगी तुम्हारी लम्बाई उतनी ही छोटी होती जायेगी और फिर जितने कदम तुमने चले होंगे उतने ही दिनों बाद वापस ठीक हो जाएगी, इसीलिए जब भी इन जूतों को पहनकर जितने भी कदम चलो फिर दोबारा इन जूतों को उतने ही दिनों के बाद इस्तेमाल करना।”

पिंकी को यह बात समझाकर साधू वहा से चले जाते है और  पिंकी अपनी चमकती आँखों से उन जूतों को निहारती रहती हैं। पिंकी के मन में लालच आ जाता हैं और वह सोचती हैं, “अगर मै इन जूतों को पहनकर पुरे घर में घूमू तो मेरे पास कितने सारे सोने के सिक्के हो जायेंगे।” यह सोचकर पिंकी अपने कमरे में जाती हैं। और उन जादुई जूतों को पहन लेती हैं और चार कदम चलती हैं, तभी उसे साधू की बात याद आती हैं की जितने कदम चलोगे उतनी ही लम्बाई छोटी हो जायेगी, लेकिन फिर भी पिंकी सोचती है, “लम्बाई तो मेरी अभी बहुत बढ़ेगी तो अभी थोड़ी छोटी होने से क्या फरक पड़ता है।”

यह सोचकर पिंकी उन जूतों को पहनकर अपने सारे कमरे में घूमने लगती है और काफी देर तक ऐसे ही घूमती रहती है, अब जब थोड़ी देर बाद पिंकी घूमते - घूमते थक जाती है तो वो रूकती हैं और सोचती है की, “बहुत देर से घूम रही हूँ और सोने के सिक्के भी बहुत सारे हो गये है अब थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ।

यह सोचकर जैसे ही पिंकी अपने बिस्तर की तरफ बढ़ती है तो वह देखती है की अब वो उस तक नहीं पहुँच सकती क्योंकि अब वह एक चूहे जितनी छोटी हो गयी होती है और उसका बिस्तर अब उसके लिये बहुत बड़ा हो गया होता है। अब पिंकी बहुत पछताती हैं और तेज - तेज रोने लगती है उसे अब अपनी गलती महसूस होती है, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था।

अगले दिन जब पिंकी के मम्मी - पापा घर वापस आते है तो वह पिंकी को घर में हर तरफ ढूंढ़ते है लेकिन पिंकी उन्हें कहीं भी नज़र नहीं आती, तब वह दोनों पिंकी के कमरे में जाते है तो उन्हें वहा ढेर सारे सोने के सिक्के नज़र आते है इसके अलावा उन्हें वहा कोई भी नज़र नहीं आता, तभी उन्हें पिंकी के रोने की आवाज आती है लेकिन पिंकी कही नजर नहीं आती पिंकी के मम्मी-पापा उसे कमरे  के हर कोने में ध्यान से ढूंढ़ने लगते है।

थोड़ी देर ढूंढ़ने के बाद मम्मी-पापा को पिंकी कमरे में एक कोने में बैठकर रोती हुई दिखाई देती है जिसे देखकर वह दोनों हैरान रह जाते है और उसे वहा से उठाकर अपने साथ ले जाते है और अपनी बेटी को ऐसे देखकर बहुत दुखी होते है। इसके बाद पिंकी उन्हें सारी बात बताती है, सारी बात सुनकर उसके पापा उसे समझाते है की लालच करना बहुत बुरी बात है | पिंकी को अब समझ में आ जाती है की लालच हमेशा हानि ही पहुचता है |

फिर पिंकी के मम्मी  और पापा उस साधू को ढूंढ लेते है जिसने ये जादुई जूते पिंकी को दिये थे, साधू ने पिंकी को ठीक करने का उपाय बताया कि इन जूतों को अलग-अलग किसी नदी मैं प्रवाहित करने से इनका जादू समाप्त हो जाएगा और पिंकी पहले जैसी हो जाएगी पर उनसे मिले सोने के सिक्के आप लोग रख सकते हो जिससे आपकी गरीबी ठीक हो जाएगी। अगले दिन ही पिंकी अपने मम्मी-पापा के साथ जाकर उन जूतों को नदी में फेंक देती है। 

शिक्षा- हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए।
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