पंचतंत्र की कहानी - नकली तोता

एक समय की बात हैं जंगल में तोतों का एक झुंड रहता था। झुंड के सभी तोतों को बहुत ज़्यादा और बेमतलब बोलने की बहुत बुरी आदत थी। सभी हर समय ज़ोर-ज़ोर से और बेमतलब बोला करते थे। उन्ही में से एक मिठ्ठू नाम का तोता भी था। जो बहुत कम बोलता था। सभी तोते उसे नकली तोता कहकर चिढ़ाते थे। एक दिन दो तोते आपस में बात कर रहे थे इस पर भी मिठ्ठू तोता कुछ नहीं बोला। ये देखकर तोतों के मुखिया ने कहा, “तोतों का तो काम ही होता हैं बोलना। ये मिठ्ठू इतना कम बोलता है, इसलिए ये असली तोता नहीं हो सकता। ये नकली तोता है!” पर मिठ्ठू किसी की बात का बुरा नहीं मानता था। और ना ही कभी किसी की बराबरी करने की कोशिश करता था।

एक दिन मुखिया की पत्नी का हार चोरी हो गया। मुखिया की पत्नी ने मुखिया से रोते हुए कहा, “किसी ने मेरा हार चुरा लिया है। लेकिन मैंने उस चोर को भागते हुए देखा है। वो चोर इसी झुंड में से कोई हैं।” ये सुनकर मुखिया ने झुंड के सभी तोतों को जमा होने के लिए कहा। जब सभी तोते जमा हो गये तो मुखिया बोला, “किसी ने मेरी पत्नी का हार चुरा लिया है। लेकिन मेरी पत्नी ने उस चोर को भागते हुए देख लिया था। उसने मुझे बताया कि उस चोर की चोंच लाल रंग की है और हमारे झुंड में लाल रंग की चोंच सिर्फ हीरु और मिठ्ठू की ही है।” ये सुनकर सभी तोते जोर-जोर से बोलते हुए मुखिया को इन्साफ़ करने के लिए कहने लगे |

झुंड के इस बर्ताव को देखकर मुखिया सोचने लगा, “ये सभी तोते मेरे प्रीय हैं। मैं इनमें से किसी पर शक नहीं कर सकता। ये सोचकर उन्होंने पास में रहने वाले एक बुजुर्ग कौवे की सहायता मांगी और उन्हें चोर का पता लगाने को कहा। कौवे ने मुखिया की बात मान ली।

अगले दिन सभी तोते मुखिया के घर के बाहर जमा हुए। कौवे ने पहले मिठ्ठू और हीरु तोते को गौर से देखा और फिर पूछने लगे, “तुम दोनों चोरी के वक़्त कहाँ थे?” इसपर हीरु तोता ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगा, “मैं शाम को दाना चुगकर लौटा तो बहुत थका हुआ था, इसलिए खाना खाकर मैं उस रात जल्दी अपने घौंसले में सो गया था”। और वहीं दूसरी तरफ मिठ्ठू तोता बड़े आराम से और धीरे से बोला, “मैं अपने घौंसले में सो रहा था।” कौवे ने दोबारा पूछा, “तुम दोनों अपनी बात साबित करने के लिए क्या कर सकते हो?” इसपर एक बार फिर हीरु तोता ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगा, “मेरे बारे में सब जानते हैं। मैं कभी झूठ नहीं बोलता। ये चोरी इस नकली तोते ने ही की हैं, तभी चुप-चाप खड़ा हैं।

“मैंने चोरी नहीं की”। मिठ्ठू का शांत और मीठा जवाब सुनकर कौवा मुस्कुराकर बोला, “चोरी हीरु तोते ने ही की हैं!”। कौवे की बात सुनकर सबको बहुत हैरानी हुई। मुखिया ने बुज़ुर्ग कौवे से पूछा, “आप कैसे कह सकते हैं कि चोरी हीरु तोते ने की हैं?” इसपर बुज़ुर्ग कौवा बोला, “हीरु तोता ज़्यादा बोलकर अपने झूठ को सच साबित करने की कोशिश कर रहा था. जबकि मिठ्ठू तोता जानता था कि वो सच्चा हैं, इसलिए वो सच बोल रहा था। वैसे भी हीरु तोता बहुत ज़्यादा बोलता हैं। इसलिए उसकी बात पर विश्वास नहीं किया जा सकता।”

ये सुनकर सभी तोते गुस्सा हो गये और हीरु को कड़ी से कड़ी सजा देने की बात कहने लगे. लेकिन तभी मिठ्ठु तोता बोला, “मुखिया जी, हीरु तोते ने पहली बार ऐसी गलती की हैं। और उसने अपनी गलती की माफ़ी भी मांग ली. इसलिए आप उसे माफ़ कर दीजिये”. मिठ्ठू की बात मानकर मुखिया ने हीरो तोते हो माफ़ कर दिया ।

इस घटना से सभी तोतों को समझ आ गया कि ज़्यादा बोलने से हमारी बातों की महत्ता ख़तम हो जाती है। और उस दिन के बाद से सभी तोते कम बोलने लगे।

शिक्षा - हमें कम और मीठा बोलना चाहिए क्योंकि कम बोलने से बातों की महत्ता बनी रहती है।

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