किसी जंगल में हाथियों का एक झुंड रहता था। झुंड के सरदार को गजराज कहते थे। वह विशालकाय, लम्बी सूंड और लम्बे- मोटे दांतों वाला था। खंभे के जैसे उसके मोटे-मोटे पैर थे। जब कभी भी वह चिंघाड़ता था तो सारा वन गूंज उठता था।
गजराज अपने झुंड के सभी हाथियों से बहुत प्यार करता था। वह खुद मुसीबत मोल ले लेता था लेकिन झुंड के किसी भी हाथी को कष्ट में नहीं पड़ने देता था। गजराज के लिए सभी हाथियों के मन में बहुत सम्मान था।
उसी जंगल में खरगोशों की एक बस्ती थी। उस बस्ती में बहुत सारे खरगोश रहते थे। सभी हाथी, खरगोशों की बस्ती से होकर झील में पानी पीने के लिए जाया करते थे। हाथी जब भी खरगोशों की बस्ती से निकलते थे, तो छोटे-छोटे खरगोश उनके पैरों के नीचे आ जाते थे। कुछ खरगोश मर जाते थे तो कुछ घायल हो जाते थे।
रोज-रोज खरगोशों को मरते और घायल होता देखकर बस्ती में हलचल मच गई। खरगोश सोचने लगे की अगर हाथियों के पैरों से वह हर रोज़ इसी तरह कुचले जाते रहे, तो वह दिन दूर नहीं होगा जब उनका पूरी तरह से खात्मा हो जाएगा।
अपनी रक्षा का उपाय सोचने के लिए खरगोशों ने एक सभा बुलाई। सभा में सारे खरगोश इक्कट्ठा हुए। खरगोशों के सरदार ने हाथियों के अत्याचारों का वर्णन करते हुए कहा, "क्या हम सभी खरगोशों में से कोई ऐसा है, जो अपनी जान पर खेलकर हाथियों का अत्याचार बंद करा सके?"
सरदार की बात सुनकर एक खरगोश बोला, "सरदार, अगर मुझे खरगोशों का दूत बनाकर गजराज के पास भेजा जाए, तो मैं हाथियों के अत्याचार को बंद करा सकता हूं।" सरदार ने खरगोश की बात मान कर उसे खरगोशों का दूत बनाकर गजराज के पास भेज देता है। खरगोश हाथियों के झुण्ड पास पहुंच जाता है । गजराज सभी हाथियों के बीच में खड़ा था। खरगोश कुचले जाने के डर से सीधे हाथियों के बीच में से न जाकर पास की एक ऊंची चट्टान पर चढ़ जाता है। चट्टान पर खड़ा होकर उसने गजराज को पुकारकर कहा, "गजराज, मैं चंद्रमा का दूत हूं। चंद्रमा के पास से तुम्हारे लिए एक संदेश लाया हूं।"
गजराज ने चोंकते हुए कहा, “क्या कहा तुमने? तुम चंद्रमा के दूत हो? तुम चंद्रमा के पास से मेरे लिए क्या संदेश लाए हो?"
गजराज की बात का उतर देते हुए खरगोश कहता है, "हां गजराज, मैं चंद्रमा का दूत हूं। चंद्रमा ने तुम्हारे लिए संदेश भेजा है। तुम्हारे झुण्ड ने चंद्रमा की झील का पानी गंदा कर दिया है। तुम्हारे झुंड के हाथी, खरगोशों को पैरों से कुचल-कुचलकर मार डालते हैं। चंद्रमा खरगोशों को बहुत प्यार करते हैं, उन्हें अपनी गोद में रखते हैं। चंद्रमा तुमसे बहुत नाराज हैं। तुम सावधान हो जाओ। नहीं तो चंद्रमा तुम्हारे सारे हाथियों को मार डालेंगे।"
खरगोश की बात सुनकर गजराज भयभीत हो जाता है । वह खरगोश को सचमुच चंद्रमा का दूत और उसकी बात को चंद्रमा का संदेश समझ लेता है। गजराज डर कर कहता है, "यह तो बहुत बुरा संदेश है। तुम मुझे तुरंत चंद्रमा के पास ले चलो। मैं उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा माँगना चाहता हूँ।"
खरगोश, गजराज को चंद्रमा के पास ले जाने के लिए तैयार हो जाता है। खरगोश बोलता है, "मैं तुम्हें चंद्रमा के पास ले कर जा सकता हूं लेकिन शर्त यह है कि तुम अकेले ही चलोगे।"
गजराज, खरगोश की बात मान लेता है। पूर्णिमा की रात थी। खरगोश, गजराज को लेकर झील के किनारे जाता है। वह गजराज से कहता है, “लीजिये गजराज, चंद्रमा से भेंट कीजिये।" खरगोश झील के पानी की ओर संकेत देता है। गजराज पानी में चंद्रमा की परछाईं को ही चंद्रमा मान लेता है। गजराज चंद्रमा से क्षमा मांगने के लिए अपनी सूंड पानी में डाल देता है। पानी में लहरें पैदा हो जाती हैं और परछाईं अदृश्य हो जाती है ।
इस पर खरगोश कहता है, "चंद्रमा तुमसे नाराज हैं। तुमने झील के पानी को अपवित्र कर दिया है। तुमने खरगोशों की जान लेकर पाप किया है इसलिए चंद्रमा तुमसे मिलना नहीं चाहते। गजराज ने खरगोश की बात सच मान लेता है।" गजराज ने डर कर कहा, "क्या ऐसा कोई उपाय है, जिससे मैं चंद्रमा की नाराज़गी को दूर कर सकूं?"
हाथी की ये बात सुनकर खरगोश ने जवाब दिया, "हां, उपाय है। तुम्हें प्रायश्चित करना होगा। तुम कल सुबह ही अपने झुंड को लेकर यहां से दूर चले जाओ। ऐसा करने से चंद्रमा तुमसे खुश हो जाएंगे।"
गजराज प्रायश्चित करने के लिए तैयार हो जाता है। वह अगले दिन ही हाथियों के झुंड सहित जंगल से चला जाता है।
इस तरह, खरगोश अपनी चालाकी से गजराज को धोखे में डाल देता है और अपनी बुद्घिमानी से साथी खरगोशों को मरने से बचा लेता है।
सारांश: बुद्धि के बल से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।
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