बहुत पुरानी बात है, एक घना जंगल हुआ करता था। उसमें अनेक प्रकार के छोटे-बड़े जानवर रहते थे। जंगल में कई प्रकार के पेड़-पौधे थे जिनमें से एक पीपल और एक आम का पेड़ भी था। आम का पेड़ स्वभाव से अपने फल की तरह नरम था, जबकि पीपल का पेड़ स्वभाव से कठोर था।
एक दिन, रानी मधुमक्खी अपने साथियों के साथ जंगल में रहने आई। रानी मधुमक्खी ने देखा की पीपल का पेड़ बहुत बड़ा और घना है। वह उसी पेड़ पर छत्ता बनाने के बारे में सोचती है। इसके लिए वह पीपल के पेड़ से पूछती है, "पीपल महाराज, हम इस जंगल में नये हैं। कृप्या आप हमें आश्रय देकर हमारी सहायता करें।"
अपने स्वभाव के अनुरूप, पीपल का पेड़ रानी मधुमक्खी को छत्ता बनाने से मना कर देता है और उसे कहीं और छत्ता बनाने की सलाह देता है। रानी मधुमक्खी को यह सुनकर बहुत दुःख होता है। संयोग से, पास में खड़ा आम का पेड़ उन दोनों की बातचीत सुन रहा होता है। आम का पेड़, पीपल के पेड़ को समझाने की बहुत कोशिश करता है लेकिन पीपल का पेड़ टस से मस नहीं होता। अंत में, आम का पेड़ रानी मधुमक्खी को उसकी टहनियों पर छत्ता बनाने की अनुमति दे देता है। रानी मधुमक्खी आम के पेड़ पर अपना छत्ता बना लेती है और अपने झुण्ड के साथ वहीं रहने लगती है।
कुछ दिनों के बाद, दो लकड़हारे जंगल में आते हैं। वह बड़े से आम के पेड़ को देखकर सोचते हैं कि इस पेड़ की लकड़ियाँ बहुत महँगी बिकेंगी। लेकिन तभी उनकी नजर आम के पेड़ पर बने हुए मधुमक्खियॉं के छत्ते पर पड़ती है। मधुमक्खियों के डर के कारण वह आम के पेड़ को ना काटकर किसी और बड़े पेड़ की तलाश करने लगते हैं।
तभी उन्हें पीपल का पेड़ दिखाई देता है जो आम के पेड़ से भी बड़ा और घना था। लकड़हारे पीपल के पेड़ को काटने लग जाते हैं, जिससे वह दर्द के मारे चिल्लाने लगता है। आम का पेड़, पीपल के पेड़ की दर्दनाक आवाज़ें सुनता है और रानी मधुमक्खी से पीपल के पेड़ की सहायता करने की गुज़ारिश करता है।
रानी मधुमक्खी, आम के पेड़ की बात मानकर अपने झुण्ड के साथ लकड़हारों पर आक्रमण करती है। लकड़हारे मधुमक्खियों से डर कर भाग जाते हैं। पीपल का पेड़ अपने घमंड के लिए रानी मधुमक्खी से माफ़ी मांगता है।
सारांश – हमें कभी भी अहंकार नहीं करना चाहिए और अपने से छोटों की हमेशा सहायता करनी चाहिए।