एक घने जंगल में शेर और सियार रहते थे। सियार अव्वल दर्जे का चापलूस था। एक बार शेर की हाथी से लड़ाई हो गई और शेर बुरी तरह से घायल हो गया। शेर की टांग में काफी चोट आई जिसकी वजह से उसका चलना मुश्किल हो गया। ना चल पाने की वजह से शेर शिकार नहीं कर पा रहा था और भूख से शेर की हालत ख़राब होती जा रही थी।
ऐसे में शेर सियार को कहता है, "मैं जख्मी होने के कारण शिकार करने में असमर्थ हूँ। मेरी जगह तुम जाओ और किसी मुर्ख जानवर को मेरे पास लेकर आओ। उसके यहाँ आते ही मैं उसे मार दूंगा। तब हम दोनों के खाने का इंतजाम हो जाएगा।"
सियार उसकी आज्ञा के अनुसार किसी मुर्ख जानवर की तलाश करने के लिए निकल जाता है। जंगल से बाहर जाकर वह देखता है की एक गधा सूखी हुई घास चर रहा है। सियार को वो गधा देखने में ही मूर्ख लगता है। सियार उसके पास जाता है और बोलता है,“नमष्कार चाचा, कैसे हो? बहुत कमजोर लग रहे हो। क्या बात है?”
सहानुभूति पाकर गधा बोलता है,“नमष्कार। क्या बताऊँ, मैं जिस धोबी के पास काम करता हूँ। वह दिन भर काम करवाता है। पेट भर चारा भी नहीं देता।”
सियार बोलता है, “तो तुम मेरे साथ जंगल में चलो। वहां बहुत हरी-भरी घास है। आप की सेहत तुरंत अच्छी हो जाएगी।” यह सुनकर गधा सियार के साथ जाने के लिए राजी हो जाता है। गधा जब सियार के साथ जंगल में पहुँचता है तो शेर उस पर झपट्टा मार देता है लेकिन वह गधे को दबोच नहीं पाता। गधा ना आव देखता है, ना ताव, और तुरंत वहां से भाग जाता है।
गधे के भागने पर सियार शेर से कहता है, "दोस्त, अब तुम्हारे में वो पहले वाली बात नहीं रही। यह सुनकर शेर, सियार से कहता है, "माफ़ करना दोस्त, इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम दोबारा उस गधे को लेकर आओ। अगली बार कोई गलती नहीं होगी।”
सियार एक बार फिर उस गधे के पास जाता है। उसे मनाने के लिए सियार मन में नई योजना बनाता है और बोलता है,“अरे चाचा, तुम वहां से भाग क्यों आये?” गधे जवाब देता है, "मुझे अपनी जान प्यारी थी तो भाग आया।”
“हा हा हा… वो कोई शेर नहीं था, वो तो गधी थी जिसके बारे में मैंने आपको बताया था। वह तुम पर मोहित हो गई थी और वो तुमसे गले मिलना चाहती थी।" एक तरफ गधा ये सब सुनकर फुला नहीं समा रहा था, तो दूसरी तरफ सियार गधे को फिर से बेवक़ूफ़ बनाकर खुश हो रहा था। सियार गधे को फिर से शेर के पास ले जाता है और इस बार शेर कोई गलती किये बगैर गधे का शिकार करके अपने और सियार के भोजन का बंदोबस्त कर लेता है।
सारांश- हमें दूसरी की बातों में कभी नहीं आना चाहिए और हमेशा अपने विवेक से काम लेना चाहिए।