किसी गाँव में एक किसान रहता था। गाँव में सभी
की फसलें अच्छी होती थीं, लेकिन उसकी फसल इतनी अच्छी नहीं होती थी। फसल अच्छी न
होने के कारण वह बहुत परेशान रहता था, क्योंकि उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह
खेती के लिए उन्नत बीज और बढ़िया औजार खरीद सकें।
एक दिन किसान अपनें खेत में ही सो जाता है। अगले दिन सुबह जब वह उठता है तो उसे अपनें खेत के पास एक साँप नजर आता है। यह देखकर
किसान मन ही मन सोचता है कि हो-न-हो यही मेरे खेत के देवता हैं। मैंने इनकी पूजा
नहीं की है, इसीलिए मेरी फसल अच्छी नहीं हो रही है।
यह विचार मन में आते ही वह घर जाकर एक कटोरी दूध
ले आता है और साँप के सामने रख कर घर चला जाता है। अगले दिन जब वह खेत में वापस
आता है तो उसे कटोरी में दूध कि जगह एक स्वर्ण मुद्रा मिलती है। इस तरह किसान हर
रोज साँप के लिए दूध लाने लगा और साँप भी उसे प्रतिदिन एक स्वर्ण मुद्रा देने लगा।
एक दिन किसान का बेटा, उसको ऐसा करते हुए देख
लेता है। तब किसान का बेटा उससे पूछता है कि , पापा आप साँप को दूध क्यों पिला
रहें हैं। किसान अपने बेटे से कहता है कि, यह साँप ही अपने खेत के देंवता है और
यह दूध पिलाने से काटतें नहीं बल्कि स्वर्ण मुद्रा देते है।
उस दिन से किसान का बेटा भी प्रतिदिन साँप को
दूध पिलाने लगा और साँप भी उसे हर रोज एक स्वर्ण मुद्रा देने लगा। यह देख किसान
का बेटा सोचता है कि मैं इसके लिये हर रोज दूध ले कर आता हूँ और यह केवल एक ही स्वर्ण
मुद्रा देता है, और इस तरह उसके मन में लालच आ जाता है और सोचता है कि क्यों न इस
साँप से सारी स्वर्ण मुद्रायें एक साथ ही ले ली जाये?!
अगले दिन जब किसान का बेटा साँप के लिए दूध लेकर
आता है तो साँप को अपने सामने देख वह उसे छड़ी से मारने लगता है। साँप भी गुस्से
में उसे काट लेता है और किसान का बेटा वहीँ मर जाता है।