बहुत समय पहले की बात है। एक आश्रम में चार मित्र ऋषि से विभिन्न तरह कि विद्या प्राप्त कर रहे थे | ऋषि ने उन चारों को कई तरह के यज्ञों को सम्पन्न करने का ज्ञान दिया। जब उन चारों की शिक्षा समाप्त हुई तो वे अपने घर जाने के लिए ऋषि से आज्ञा लेने जाते हैं। ऋषि उन चारों को बोलते हैं, "मुझे तुम्हे जो सिखाना था, वो मैंने सिखा दिया। अब तुम अपने विवेक से अपनी विद्या का इस्तेमाल करना।" ऋषि से आशीर्वाद लेकर वो चारों अपने गाँव के लिए रवाना होते हैं।
रास्ते में वह एक घने जंगल से गुजरते हैं। वहां उन्हें एक शेर का कंकाल नजर आता है। उन चारों में से एक मित्र बोलता है, “मित्रो, मैंने जो ज्ञान गुरूजी से प्राप्त किया है, उससे इस शेर के कंकाल की हड्डियों को मैं एक कर सकता हूँ।" इससे पहले कि कोई कुछ कह पाता, वह मंत्र पढ़कर उस कंकाल को एक कर देता है। यह देखकर बाकी तीनो मित्र हैरानी से एक-दुसरे को देखते हैं और खुश होते हैं।
दूसरा मित्र भी बोल पड़ता है, "मित्रो, मुझे एक ऐसा मंत्र आता है जिससे मैं इस कंकाल के अंगो का निर्माण कर सकता हूँ।" यह बोलते ही वह एक मंत्र पढता है और पलक झपकते ही शेर के सारे अंगो का निर्माण हो जाता है। यह देखते ही तीसरा मित्र कहता है, "मित्रो, मैं भी एक ऐसा मंत्र जानता हूँ जिससे इसमें प्राण फूंके जा सकते हैं।" ये बात सुनते ही चौथा मित्र बोलता है, "मित्रो, ऐसा कदापि मत करना। अगर तुमने इस शेर को जीवित कर दिया तो ये शेर हम सबको मार कर खा जाएगा।"
चौथे मित्र की यह बात सुनकर बाकी तीनो मित्र हंसने लगते हैं। उन तीनो में से एक मित्र बोलता है, "यह कायर है। इसे ना तो विद्या आती है और ना ही ये हिम्मत रखता है।" चौथा मित्र फिर से उन तीनों को चेताता है, "मित्रो, अगर तुम्हे मेरी बात नहीं माननी तो मत मानो। पर कम से कम मुझे पेड़ पर तो चढ़ने दो।"
इतना बोलते ही वह पेड़ पर चढ़ जाता है। तीसरा मित्र मंत्र पढना शुरू करता है। जैसे ही मंत्र खत्म होता है, शेर जीवित हो जाता है। तुरंत ही वह उन तीनो पर दौड़ता है और उन्हें मारकर खा लेता है। उन्हें खाने के बाद वह चला जाता है उसके जाते ही चौथा दोस्त पेड़ से उतरता है और कहता है, "काश तुमने मेरी बात मान ली होती।" फिर वह अकेला ही अपने घर की ओर चल पड़ता है।
सारांश - “हमें कभी भी अपने ज्ञान का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए!!”
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