पंचतंत्र की कहानी - चतुर कबूतर

एक समय की बात है, किसी गाँव में एक बहेलिया रहता था | वह प्रतिदिन,अपने परिवार का जीवन निर्वाह करने के लिए शिकार करने जाता था। एक दिन जंगल में उसे कबूतरों का झुण्ड नजर आया और उन्हें देखकर वह सोचने लगा कि “काश मेरे पास ये सुन्दर कबूतर होते तो मैं इनके मनचाहे दाम वसूलता।” यह सोचकर बहेलिया जाल बिछाता है और कबूतरों को फ़साने के लिए दाने बिखेर झाड़ियों में छिप जाता है|

कुछ देर बाद एक कबूतर बिखरे हुए दानों को देखता है और बोलता है - “कितने सारे दाने हैं। लगता है आज हमें भोजन के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी।" बाकी कबूतर भी दानों को देख उसकी हाँ में हाँ मिलाते
हैं


झुण्ड का सबसे बड़ा और अनुभवी कबूतर उन्हें रोकता है और कहता है - “रुको दोस्तों, मुझे तो ये किसी बहेलिए की चाल लगती है। वरना इतने घने जंगल में अचानक से इतने सारे दाने कहाँ से आ गए? यहाँ जरूर कोई है।"

उसकी बात को नजरअंदाज कर एक कबूतर बोलता है - "दादा, आप भी कमाल करते हो। अब तक तो हमें खाना नहीं मिल रहा था और अब जब मिल गया है तो आपको परेशानी हो रही है।  ये तो वही बात हुई कि हाथ को आया और मुंह ना लगा।” यह कहकर वह झुण्ड के बाकी कबूतरों के साथ दाना खाने उड़ जाता है। अनुभवी कबूतर नजदीक ही एक पेड़ की शाखा पर बैठ जाता है |

जैसे ही सभी कबूतर दाना चुगने लगते हैं, उन्हें ज्ञात होता हैं कि उनके पैर जाल में फंस चुके हैं। वे उड़ने के लिए पंख फड़फड़ाते हैं पर कुछ नहीं कर पाते। अनुभवी कबूतर अपने साथियों को दुविधा में देख उनके पास आता है।

दूसरी ओर बहेलिया कबूतरों को जाल में फंसा देख बहुत खुश होता है और उन्हें पकड़ने के लिए
झाड़ियों से बाहर निकलता है। अनुभवी कबूतर बहेलिये को देख फटाफट बोलता है - "तुम सब शांत रहो। इस तरह फड़फड़ाने से कुछ नहीं होगा और बहेलिया तुम्हे ले जायेगा। भलाई इसमें है की तुम सब साथ में जाल समेत ही उड़ जाओ।"

सभी कबूतर वैसा ही करते हैं और बहेलिये के पहुंचने से पहले जाल समेत उड़ जाते हैं। अनुभवी कबूतर अपने मूषक मित्र की मदद से जाल कुतरवा देता है और सभी कबूतर आज़ाद हो जाते हैं।

सारांश : एकता में बल है।

समाप्त ||
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