पंचतंत्र की कहानी - दोस्ती

https://youtu.be/V3tRkDB5tPc 

एक घने जंगल मे बहुत पुराना कुआं था उस कुँए मे बहुत सारे मेंढक रहते थे, उन्ही मे से एक मेंढक था  जिसका नाम था स्वामी | कुँए के सभी मेंढक अकारण स्वामी का मजाक उड़ाते थे जिससे स्वामी बहुत परेशान रहता था |

एक बार की बात है एक मेंढक बोलता है अरे स्वामी कंहा जा रहे हो और क्या बात है? बड़े गुस्से मे दिख रहे हो| फिर दूसरी तरफ से दूसरा मेंढक मजाक उड़ाते हुए बोला! – लगता है, खाना नही खाया| जो मुझे खाने की नज़र से देख रहे हो|  


स्वामी – देख लूँगा तुम सब को यह बोलते हुए, वह वंहा से चला जाता है |


और सोचने लगता है कि इन सभी को सबक सिखाना ही पड़ेगा और फिर स्वामी कुँए से बाहर निकल आया और कुँए की मुंडेर पर बेठकर किसी ताकतवर प्राणी की राह देखने लगता है |


तभी स्वामी को एक साँप अपनी ओर आता हुआ दिखाई दिया उसे देखते ही उसकी बाछे खिल गयी| वो यह बात जनता था की ये साँप मेरे सभी शत्रुओं को ख़त्म कर सकता हैऔर फिर मुझे कोई नहीं चिढाएगा| यह सोच कर स्वामी साँप के पास जा पहुंचा| 

और बोला! मेरे नाम स्वामी है| क्या तुम मेरे से दोस्ती करोगे?


साँप फन फुफकारते हुए बोला! क्या कहा? तुम मेरे से दोस्ती करना चाहते हो?


स्वामी– तुमने बिलकुल ठीक सुना! मै तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूँ|


साँप – मैंने अपनी जिन्दगी मे पहली बार देखा ओर सुना है, की एक मेंढक साँप का दोस्त बनाना चाहता है|  क्या तुम्हे पता नहीं की सांपो को मेंढक का स्वाद बहुत पसंद है|


स्वामी (मुस्कुराते हुए)– मुझे पता है| लेकिन फिर भी मै तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूँ! इससे हम दोनों को ही फायदा होगा| 


साँप ने स्वामी से पूछा– इसमें भला मेरा क्या फायदा?


स्वामी ने साँप से बताया – मै जिस कुएं मे रहता हु| वंहा मेरे बहुत से सगे सम्बन्धी, रिश्तेदार और दोस्त भी रहते है,  मै उनकी तानो ओर बांतो से बडा परेशान रहता हूँ | उनकी वजह से मेरा जीना नरक बन गया है|


साँप– तो मै इसमें तुम्हारी क्या मदद कर सकता हों?


स्वामी– मै तुम्हे उस कुए मे ले चलूँगा| तुम मेरे बदमाश रिश्तेदारों को अपना भोजन बना लेना|


साँप– ये बहुत अच्छी योजना है, तुम बस मुझे उस कुए मे जाने का रास्ता बता दो|


स्वामी– ठीक है| 


और! फिर स्वामी उस भयानक साँप को उस कुएं के पास ले गया| और कुएं मे जाने का रास्ता बता दिया जिससे साँप बड़ी आसानी से कुएं मे घुस सकता था| फिर स्वामी साँप को लेकर कुएं मे पहंचा|


इधर स्वामी के विरोधियो का दिल दहल गया उनको अपनी मौत सामने दिखाई दे रही थी| स्वामी इशारा कर-कर के अपने विरोधियो के बारे मे बताने लगा| और अब साँप एक एक कर सभी मेंढको को  रोज़ खाने लगा|  अब साँप को मेंढको का स्वाद लग गया था| उसने अब स्वामी के रिश्तेदारों को भी खाना शुरू कर दिया था| 


स्वामी -  (साँप से) ये तुम क्या कर रहे हो? मैंने तुम्हे केवल अपने विरोधियो को खाने के लिए कहा था| लेकिन तुम मेरे रिश्तेदारों को क्यूँ खा रहे हो|


साँप – तुम मुझे यंहा ले कर आये हो तो तुम्हारा फ़र्ज़ बनता है कि मेरे लिए भोजन का प्रबंध करो नहीं तो मै तुम्हे भी खा जाऊंगा|  साँप की ये बात सुन कर स्वामी (मेंढक) समझ गया था की उसकी जान भी खतरे मे है| परन्तु स्वामी (मेंढक) बुधिमान था| उसने जल्दी ही अपनी जान बचने की योजना बना ली| ओर बोला ! ठीक है, मै तुम्हारे लिए भोजन का प्रबंध करूँगा| लेकिन उसके लिए मुझे कुँए से बाहर जाना पड़ेगा|  साँप बोलता है, अगर तुम भाग गए तो, ऐसा करता हो मै भी तुम्हारे साथ चलता हूँ|  


स्वामी - नहीं-नहीं अगर तुम मेरे साथ गए तो कोई भी मेंढक मेरे से दोस्ती नही करेगा| सब तुम्हे देख कर भाग जाएंगे| थोडा सा धीरज रखो!


साँप ने उसकी बात मान ली! और स्वामी कुँए से बाहर निकल कर भाग गया| वह सोच रहा था की मैं कितना बेबकुफ़ था की मैंने इस साँप पर भरोसा किया| अगर मैं इस कुँए से बहार नहीं निकलता तो ये साँप मुझे भी खा जाता|


सारांश:  हमें हमेशा कोई भी काम सोच समझ कर करना चाहिए|



समाप्त !

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